हाई कोर्ट ने दिया राज्य सरकार को गहरा झटका

चुनाव व नामांकन की नई तारीखें तय करने का निर्देश

कोर्ट ने दिखाया राज्य चुनाव आयोग को न्याय का आइना

जगदीश यादव
कोलकाता। राज्य के पंचायत चुनाव को लेकर क्या हुआ और क्या होगा यह बड़ी बात नही है, सबसे संतोष जनक व राहत की बात है कि कलकत्ता हाइकोर्ट ने एक बार फिर सियासत करने वालों को न्याय का आइना जरुर दिखा दिया है। साफ कहे तो आज अदालत में जो हुआ वह ‘लोकतंत्र मेव जयते’ तो ही है। कलकत्ता हाई कोर्ट ने राज्य में होने वाले पंचायत चुनाव पर अपने पिछले फैसले को रद्द करते हुए राज्य चुनाव आयोग को निर्देश दिए हैं कि वह चुनाव के लिए नामांकन और चुनाव की नई अंतिम तिथि निर्धारित करे। हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग को इसके लिए राज्य सरकार की भी सलाह लेने के निर्देश दिए हैं।इससे पहले राज्य चुनाव आयोग ने पहले नामांकन पत्र दाखिल करने की अविध बढ़ा दी थी लेकिन खुद अपने ही आदेश को वापस भी ले लिया था। इस आदेश पर हाई कोर्ट ने मंगलवार को अंतरिम रोक लगा दी थी। अब हाई कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग को कहा है कि वह नामांकन की नई तारीखों का ऐलान करे। हाई कोर्ट ने यह भी कहा है कि अब तक भरे गए सभी नामांकन वैध होंगे। चुनाव आयोग द्वारा नामांकन पत्र दाखिल करने की अवधि बढ़ाने के आदेश को रद्द किए जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता प्रताप बंदोपाध्याय ने हाई कोर्ट का रुख किया था। जिस पर कोर्ट ने सुनवाई करते हुए अपना फैसला सुनाया। पश्चिम बंगाल में 1, 3 और 5 मई को तीन चरणों में पंचायत चुनाव कराए जाने थे। मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की जज सुब्रता तालुकदार ने तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी से सवाल पूछा कि चुनाव आयोग नामांकन की तारीख फिर बदल क्यों नहीं सकता है जबकि 9 अप्रैल को एक बार बदला जा चुका है। अब जबकि नामांकन की तारीखें बदली जाएंगी तो चुनाव की तारीखें भी बदलनी ही पड़ेंगी क्योंकि नामांकन और चुनाव के बीच में कम से कम 21 दिनों का अंतर जरूरी है।
इससे पहले भाजपा ने छह मार्च को कलकात्ता हाईकोर्ट से कहा था कि पश्चिम बंगाल में ‘लोकतंत्र की हत्या’ की जा रही है क्योंकि सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस व्यापक पैमाने पर चुनावी हिंसा में लिप्त है और आगामी पंचायत चुनाव के लिए विपक्ष के उम्मीदवारों को पर्चा दाखिल नहीं करने दे रही। उसने यह भी आरोप लगाया कि  राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से नियुक्त सहायक पंचायत चुनाव पंजीकरण अधिकारी भाजपा उम्मीदवारों को नामांकन के फॉर्म देने से इनकार कर रहा है. प्रदेश भाजपा ने नामांकन पत्र ऑनलाइन उपलब्ध करवाने की मांग की थी। जिस पर संज्ञान लेते हुए 12 अप्रैल को हाईकोर्ट ने सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस को बड़ा झटका दिया था। कोर्ट ने पंचायत चुनाव प्रक्रिया पर 16 अप्रैल तक रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग से कोर्ट के सामने चुनाव से जुड़ी सारी रिपोर्ट पेश करने को कहा था। पंचायत चुनाव की तारीखों में फेरबदल का आदेश उस एक घटना के बाद आया है, जिसमें 11 अप्रैल को उत्तरी 24 परगना जिले में विजय जुलूस के दौरान सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस में संदिग्ध गुटीय लड़ाई में दो व्यक्तियों की मौत हो गई थी। जिले के सासन इलाके में फाल्ती ग्राम पंचायत में पार्टी उम्मीदवार की निर्विरोध जीत के बाद रैली निकाली गई थी। . इस चुनाव में बड़ी संख्या में सत्तारुढ़ पार्टी के लोग निर्विरोध चुन लिए गए थे, जिसके बाद विपक्षी दलों ने हंगामा शुरू कर दिया। पार्टी के स्थानीय नेता सैफर रहमान (52) जब रैली में चल रहे थे तो उन पर चाकू से हमला किया गया. इसके बाद तृणमूल कांग्रेस के 40 वर्षीय कार्यकर्ता रजब अली पर यह आरोप लगाते हुए स्थानीय लोगों ने पीट-पीटकर मार डाला कि उसने रहमान की हत्या की है। इसके अलावा राज्य में पंचायत चुनाव नामांकन को लेकर कई जगहों पर हिंसक घटनाएं हुई थीं। पंचायत चुनाव से पहले ही तृणमूल कांग्रेस के कई उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिए गए। बीरभूम जिला परिषद की 42 में से 41 सीटों पर टीएमसी के उम्मीदवार बिना लड़े ही चुनाव जीत गए, जबकि 19 पंचायत समितियों में से 14 पर टीएमसी उम्मीदवारों को निर्विरोध विजेता घोषित कर दिया गया। मुर्शिदाबाद में भी टीएमसी ने 30 पंचायत समितियों में से 29 पर निर्विरोध जीत हासिल की। भरतपुर द्वितीय में टीएमसी ने 21 पंचायत समितियों की सीट पर जीत हासिल की है। वहीं बर्दवान में भी ममता बनर्जी की पार्टी को सभी 39 पंचायत समितियों की सीट पर एकतरफा जीत मिली थी।
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