सिंदूरी उल्लास के बीच मां के विदा होने पर भर आई आंख 

 

प्रीति प्रसाद
कोलकाता/हावड़ा/हुगली। पश्चिम बंगाल में विगत पांच दिनो से चल रहे दुर्गा पूजा महोत्सव का विजयदशमी के दिन यानी बुधवार को औपचारिक समापन हो गया। विजयादशमी के दिन प्रभात पूजा के बाद से ही देवी की विदाई की तैयारियां शुरू हुई तो लोगों के आंख भर आये। देवी को वरण करने के लिए महिलाएं परंपरागत लिबास में सज-धज कर पंडालों में उपस्थित हुई। देवी को विदा करने से पहले महिलाओं ने जम कर ‘सिंदूरदान कहे य़ा फिर सिंदूर खेला का जमकर आनंद लिया। लाल किनारी वाली साड़ियों में सुहागिन महिलाओं ने महामाया दुर्गतनाशिनी को विदा करने से पूर्व अक्षय सुहाग की कामना के तहत एक दुसरे को सिंदूर से सराबोर भी किया और फिर मिठाईयों का आदान-प्रदान भी किया। पूजा मंडप से लेकर गंगाघाट चारों तरफ सिंदूर खेला के कारण वातावरण सिंदूरी हो गया । जहां महिलाएं सिंदूरदान के दौरान उल्लासित रहीं तो उन्हें मां के बिसर्जन का मलाल भी था। शायद यहीं कारण था कि उनके आांखों के कोर से टपकते आंसू के बूंद माता के विरह वेदना की टीस को साफ दर्शा रही थी। बताते चलें कि बंगाल में विजयादशमी के दिन देवी को विदा करने से पहले महिलाओं के सिंदूर खेलने की परंपरा है। इस दौरान महिलाओं ने एक दूसरे के चेहरों पर सिंदूर लगा कर परम सौभाग्य की कामना की। सिंदूर खेल के बाद महिलाओं ने आराधना के विभिन्न उपादानो के साथ देवी को वरण किया और फिर ‘‘आबार एसो मां‘‘की गूंज के साथ भारी मन से भगवती को विदाई दी गई। इसके साथ ही राज्य में पिछले एक हफ्ते से जारी उत्सव का विधिवत समापन हो गया। हालांकि तमाम पंडालों में प्रतिमाएं मौजूद रहेंगी क्योंकि पंडालों की प्रतिमा का विसर्जन लक्खी पूजा के बाद शुरू होगा। बची प्रतिमाएं कोजागरी लक्खी पूजा के हाद विसर्जित किए जाने की संभावना है। पंडालों में प्रतिमाएं होने की वजह से अगले दो दिनों तक कोलकाता में रौनक बरकरार रहेगी लेकिन दुर्गा पूजा का आनंद और उल्लास भरा वातावरण फिर से महसूस करने के लिए लोगों को साल भर प्रतीक्षा करनी होगी। इस बार मौसम प्रतिकूल होने के बावजूद लोगों ने दुर्गा पूजा का भरपूर लुत्फ उठाया। षष्ठी के दिन से शुरू हुआ बारिश का सिलसिला लगातार जारी रहने के बावजूद पंडालों में दर्शनार्थियों की भीड़ उमड़ती रही। बारिश से तर शहर में धार्मिक हर्षोल्लास के बीच गमगीन मन से लोग मां की विदाई दे रहें थें।पारंपरिक वेशभूषा में पूरी श्रृंगार से लालपाड़ साड़ी में सजी सुहागिन महिलाएं झुंड बनाकर पंडालों में मां का वरण करने पहुंची। पूजा की विधि विधान के अनुसार मां दुर्गा की चेहरे एवं पैर पर सिंदूर का अभिषेक करने के बाद एक दूसरे को सिंदूर लगा कर सिंदूर खेलने का सिलसिला जारी हुआ।

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