दूर के रसगुल्ले , पास के गुलगुले …!!
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
तारकेश कुमार ओझा
इसे जनसाधारण की बदनसीबी कहें या निराशावाद कि खबरों की आंधी में उड़ने वाले सूचनाओं के जो तिनके दूर से उन्हें रसगुल्ले जैसे प्रतीत होते हैं, वहीं नजदीक आने पर गुलगुल...