कोलकाता/ओटावा। क्या आपकों किन होगा की किसी घटना के घटने के एक सौ साल के बाद कोई मापी मांगें! लेकिन ऐसा ही हुआ है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो ने  दक्षिण चौबीस परगना जिले के बजबज से जूड़े ‘कामागाटा मारू’ घटना पर 102 साल के बाद संसद में माफी मांगी है। आप को बता दें कि कामागाटा मारू नाम का एक जहाज 1914 में 376 भारतीय अप्रवासियों को लेकर कनाडा के वेंकूवर तट पर पहुंचा था। जहां कनाडा सरकार ने वहां उनको उतरने नहीं दिया था। जहाज को 23 मई 1914 को वापस लौटा दिया गया था। जहाज में 340 सिख, 24 मुसलमान, 12 हिंदू थे और बाकी ब्रिटिश थे। भारत वापस बजबज आने पर जहाज पर ब्रिटिश लेना ने फायरिंग कर दी थी, जिसमें 19 लोग मारे गए थे। त्रुदो ने चुनाव प्रचार के दौरान इस घटना के लिए सिखों से माफी मांगी थी। उनके माफी मांगने के बाद सदन तालियों और “जो बोले सो नेहाल’ के नारों से गूंजने लगा। उसके बाद विपक्ष के सदस्यों ने भी 102 साल पुरानी घटना के लिए माफी मांगी।

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अभय बंग पत्रिका में 1-30 सितम्बर 2011 को प्रकाशित कामागाटा मारु पर एक खास रिपोर्ट की कटिंग

त्रुदो ने कहा, ‘उस समय कानून का पालन किया गया था। उसके मुताबिक भारत से आने वाले किसी भी शिप को उतरने नहीं दिया जा सकता था, क्योंकि भारत-कनाडा के बीच सीधी समुद्री जहाज सेवा नहीं थी।’

प्रधानमंत्री ट्रुडो ने हाउस ऑफ कॉमन्स में अपने 10 मिनट के भाषण में कहा कि आज मैं कनाडा सरकार की ओर से कामागाटा मारू घटना के लिए माफी मांगता हूं। एक शताब्दी से भी पहले यह अन्याय हुआ था। कोई दो राय नहीं कि इसके लिए कनाडा सरकार यात्रियों को शांतिपूर्वक और सुरक्षित उतारने से रोकने वाले कानूनों के लिए जिम्मेदार थी। उस घटना और उसकी वजह से बाद में मौतें के लिए हमें दुख है।’

कामागाटा मारू नाम का एक जहाज वेंकूवर बंदरगाह पर दो महीने तक खड़ा रहा। 376 में से केवल 24 यात्रियों को उतरने दिया गया। शेष 352 यात्रियों सहित जहाज को 23 मई 1914 को कनाडा की बंदरगाह से दूर समुद्र तक ले जाकर छोड़ दिया गया था। यह 27 सितंबर को कलकत्ता  बजबज लौटा। जहां ब्रिटिश सैनिकों ने इन्हें कानून तोड़ने वाला और ब्रिटिश सरकार का खतरनाक राजनीतिक विरोधी मानकर गिरफ्तार कर लिया। यात्रियों ने गिरफ्तारी का विरोध किया तो उनपर फायरिंग की गई। इसमें 19 लोग मारे गए थे।

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