कोलकाता।चार महीनों तक दर-बदर भटकने के बाद दक्षिण बंगाल का एक गांव 29 रोहिंग्या मुसलमानों का ठिकाना बना है।  तीन देशों से गुजरते हुए 5330 किमी की यात्रा करके रिफ्यूजी कार्ड प्राप्त 29 रोहिंग्या मुसलमानों ने दक्षिण बंगाल के एक इलाके में अपना आशियाना बनाया है। 29 रोहिंग्या मुसलमानों में 18 वयस्क और 11 बच्चे शामिल हैं। चार महीनों तक दर-बदर भटकने के बाद इन शरणार्थियों को ऐसी जगह मिली है जिसे वे अपना घर समझ रहे हैं। खास बात ये है कि इलाके के स्थानीय लोग और एक एनजीओ इन शरणार्थियों को सुरक्षित ठिकाना दिलाने में मदद कर रहा है। कोलकाता से करीब 45 किमी दूर दक्षिण 24 परगना जिले के बरुईपुर थाना क्षेत्र में स्थित गांव कुरुली में रोहिंग्या की नई कॉलोनी बनी है। गांव के लोगों ने ही अपने मेहमानों के लिए टिन से बने दो कमरों के घर और दो शौचालय बनवाए हैं। यही नहीं उन्होंने रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए बिजली, खाने बनाने के लिए चूल्हा, बर्तन, भोजन और कपड़ों की भी व्यवस्था की है। जहां ग्रामीण अपने मेहमानों को हमेशा साथ रखने के लिए आश्वस्त नजर आ रहे हैं वहीं रोहिंग्या प्रवासी अभी भी दर-दर भटकने के दर्द को भूल नहीं पा रहे हैं। वह लगातार अपने ऊपर राजनीति चर्चा और निर्देशों पर आंख-कान खोले हुए हैं। तीन बच्चों की मां 22 साल की मोमिना अख्तर कहती हैं कि चार महीने तक खानाबदोश की तरह जीवन काटने के बाद पिछले चार हफ्ते किसी सपने की तरह लग रहे हैं लेकिन अभी हम आशावादी होने से डरते हैं। मोमिना आगे कहती हैं , ‘पिछले चार महीनों में हम यह जान चुके हैं कि अभी किसी भी चीज के लिए सुनिश्चित नहीं हो सकते, वे इसके लिए भी निश्चित नहीं है कि अगले दिन हम कहां होंगे।’ हर तरह की मदद कर रहे हैं गांव वाले । मोमिना ने बताया कि गांव के लोग काफी मददगार हैं। उनके लिए हर तरह की व्यवस्था कर रहे हैं। मोमिना को हिंदी और बांग्ला भाषा का थोड़ा बहुत ज्ञान हैं। वह बताती हैं, ‘म्यांमार के रखाइन राज्य के सेगांबरा गांव में मेरा घर था जहां कुछ लोगों ने पीछा करते हुए घर और खेत की जमीन को आग के हवाले कर दिया।’ मोमिना ने कहा कि उनके ससुर उस घटना के बाद से गायब हैं। उस समय को याद करते हुए वह कहती हैं, ‘मैं उस समय प्रेगनेंट थी और किसी तरह अपने परिवार के साथ जंगल और नदी पार करते हुए बांग्लादेश आई। वहां हम कुछ रिफ्यूजी कैंप में रहे उसके बाद बनगांव सीमा पार करके हम भारत आ गए।’ बंगाल शिफ्ट करने से पहले वह कुछ दिन दिल्ली में भी रहीं जहां उन्हें रिफ्यूजी कार्ड मिला और उसके बाद हैदराबाद में भी रहे जहां एक एनजीओ देश बचाओ सामाजिक समिति (ऑल बंगाल माइनॉरिटी यूथ फेडरेशन की एक ईकाई) ने उनकी मदद करते हुए बंगाल में शिफ्ट कर दिया।मोमिना तीन बच्चों के अलावा अपने पति, सास और दामाद के साथ रह रही हैं। मोमिना के पड़ोस में रहने वाली हामिदा खातून (63) अपनी पोती के साथ यहां रह रही है। उनके दो बेटों और बहुओं की मौत हो गई है। वह टूटी-फूटी बंगाली भाषा में कहती हैं, ‘हमारे घर में हमला हुआ तब मैं दूसरे गांव में अपने भाई के घर पर थी। मुझे पता चला कि बेटों की हत्या हो गई है और जीवित बची पोती के साथ मैं बांग्लादेश आ गई।’ उन्होंने बताया कि उनके कुछ रिश्तेदार पहले भारत आ चुके हैं। बांग्लादेश के कॉक्स बाजार में एक रिफ्यूजी कैंप में रहने के बाद उन्होंने मणिपुर सीमा से भारत में प्रवेश किया। उसके बाद वह दिल्ली गईं जहां से वह जम्मू में मजदूर के रूप में काम कर रहे रिश्तेदारों के पास जाने का विचार कर रही थीं। हामिदा को भी एनजीओ ने मोमिना के साथ रेस्क्यू किया। हामिदा 55 वर्षीय जुबैदा खातून के साथ रह रही हैं जिनका अपने सभी संबंधियों से संपर्क टूट चुका है और वह अपनी बेटी के साथ रह रही हैं। स्थानीय प्रशासन को भी इस कॉलोनी के बारे में जानकारी है और पुलिस कैंप में रह रहे शरणार्थियों के यूनाइटेड नेशंस हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी (यूएनएचसीआर) द्वारा जारी किए गए कार्ड को चेक कर चुकी है। बरुईपुर पुलिस अधिकारी ने बताया, ‘हम उनके यूएनएचसी कार्ड चेक कर चुके हैं और पता चला है कि उनके जैसे कुछ दूसरे रोहिंग्या दिल्ली, हरियाणा और हैदराबाद में रह रहे हैं।’
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