कोलकाता। लिंग अनुपात यानि लड़के और लड़कियों के अनुपात में भद्रलोक नगरी कोलकाता का सबसे खराब साबित हुआ है. यहां कभी प्रति हजार लड़कों पर लड़कियों की संख्या ज्यादा हुआ करती थी लेकिन अब ऐसा नहीं रहा. बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना के तहत चलाए सिक्किम अगर चैंपियन के रूप में उभरा है तो हरियाणा के कुछ जिलों ने तस्वीर को उजली कर लिया है. केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण विकास मंत्री मेनका गांधी ने लोकसभा में लेकर इसकी रिपोर्ट पेश की है. जिसमें उन्होंने इस योजना में खराब और अच्छा प्रदर्शन कर रहे शहरों के बारे में बताया. फिलहाल केंद्र सरकार देश के 161 जिलों में ये योजना चला रही है. कैग की रिपोर्ट कहती है कि ये योजना अपने उद्देश्यों तक पहुंचने में नाकाम रही है लेकिन ये बात भी सही है कि देश के कुछ शहरों में राज्यों ने इसमें बेहतरीन काम किया है.
वर्ष 2014 में कोलकाता में 1000 लड़कों पर लड़कियों का अनुपात 1022 था, जो अब गिरकर 898 रह गया है. बंगाल ऐसा अकेला राज्य भी है, जहां सरकार की बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना लागू ही नहीं है. इसकी बजाए राज्य सरकार की अपनी योजना कन्याश्री चलाई जाती है. ममता सरकार का दावा है कि ये काफी सफल है. इसके तहत लड़कियों के स्कूल जाने की संख्या भी बढ़ी है. उनके विवाह की उम्र भी बढ़ गई है. कोलकाता के मामले में सबसे चौंकाने वाली बात ये भी है कि लिंग अनुपात में गिरावट उच्च वर्ग में ज्यादा है. सेक्स रेसियो में खराब प्रदर्शन करने वाले जिलों में कोलकाता के अलावा पांच उत्तराखंड के हैं, जिसमें देहरादून, हरिद्वार, चमोली, चंपावत और पिथौरागढ़ शामिल हैं और पांच उत्तर प्रदेश के, जिसमें इटावा, फर्रुखाबाद, सहारनपुर, एटा और बिजनौर शामिल हैं. लिंग अनुपात में कमाल करने वाले जिलों में करनाल और रिवाड़ी जैसे हरियाणा के जिले शामिल हैं. पंजाब का मंसा ने तस्वीर बेहतर की है. उत्तर प्रदेश से गाजियाबाद और झांसी बेहतर प्रदर्शन करने वालों में शामिल हो गए. सबसे ज्यादा कमाल किया है मिजोरम के साइहा ने, जहां लड़कियों की संख्या 1000 लड़कों पर 915 से बढ़कर 1022 हो गई है. क्यों बन नहीं रही बात पर नजर डाले तो कई कारण है है जैसे , फंड राज्य सरकारों के जरिए जिलों तक नहीं पहुंच रहा. फंड का एक योजना से दूसरे में डायवर्जन हो रहा है. हर दो तीन महीने में जिलाधिकारी बदल जाता है, तो इसे चलाए कौन-ये तय नहीं. जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य में अशांति एक बड़ी वजह ह. हरियाणा और राजस्थान ने बढिया काम किया। पानीपत में इस फंड से थीम गेट बनवा.।हर जिले के लिए सालाना पांच लाख रुपए का फंड कुछ कम है.
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