नई दिल्ली। ‘‘गुरुदेव रबिन्‍द्रनाथ टैगोर की 155वीं जयंती के अवसर पर मैं अपने देशवासियों के साथ भारत के इस महान व्‍यक्तित्‍व को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं। उक्त भावना राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने व्यक्त किये। गुरुदेव रबिन्‍द्रनाथ टैगोर की जयंती हमारे लिए मानव प्रेम, नि:स्‍वार्थ सेवा और सीमाओं से मुक्‍त रहने के उनके विचार को स्‍मरण करने का एक अवसर है। गुरुदेव ने हमें यह अहसास कराया कि साहित्‍य, इतिहास और संस्‍कृतियां मानवता के समान आदर्शों को प्रस्‍तुत करती हैं, जो राष्‍ट्रीय सीमाओं से बढ़कर हैं। मानवता की इस साझा भावना की टैगोर ने अपने साहित्‍य और संगीत में भी एक विश्‍व की कामना की है। गुरुदेव टैगोर प्रकृति के एक बड़े प्रशंसक थे और उनकी बहुत सी साहित्यिक कृतियों में प्राकृतिक विश्‍व की सरल सुंदरताओं को शामिल किया गया है। उनका मानना था कि धर्म को मंदिरों और पवित्र पुस्‍तकों के साथ-साथ प्रकृति के चमत्‍कारों और रहस्‍यों में खोजा जा सकता है। गुरुदेव टैगोर एक दिव्‍य शक्ति संपन्‍न, समर्पित और प्रकृति के विशाल अंतर में सहभागी होने के साथ-साथ प्रसन्‍नता और ऊर्जा का आदर्श संयोजन हैं। टैगोर का जीवन और उनके कार्य हमारे राष्‍ट्र और दुनिया के लोगों के लिए निरंतर एक अपार प्रेरणा के स्रोत बने रहेंगे। इस अवसर पर, टैगोर के शब्‍दों से ही प्रेरणा लेते हुए कह सकते हैं कि भारत की विचारधारा हमेशा से एकता के आदर्श की घोषणा करती रही है। एकता का यह आदर्श कभी भी किसी व्‍यक्ति, किसी प्रजा‍ति अथवा किसी संस्‍कृति को अस्‍वीकार नहीं करता।’’

 

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