जगदीश यादव
कोलकाता। देश में राष्ट्रपति चुनाव की तारीख के करीब आते ही देश की राजनीति में नये राजनीतिक समीकरण के रंग को मोदी सरकार के विरोधी गाढ़ा करने के लिये हर सम्बावित कोशिश में जुट गये हैं। वहीं भाजपा द्वारा अपने सहयोगी दलों को विश्वास में लेकर अपनी मर्जी का उम्मीदवार मैदान में उतारने की तैयारी काफी पहले से ही शुरू कर दी गई है। ऐसे में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मुखर ना हो यह हो ही नहीं सकता है। वह 15 मई को दिल्ली जा रहीं हैं और 16 को वहां सोनिया गांधी के साथ एक बैठक में शामिल होंगी। राजनीति की गलियारों से मिली जानकारी को माने तो सोनिया गांधी ने फोन के द्वारा ममता बनर्जी के साथ-साथ बसपा सुप्रीमो मायावती,लालू यादव, अखिलेश यादव को भी दिल्ली आमंत्रित किया है। सोनिया गांधी, ममता बनर्जी व मायावती समेत अन्य विपक्षी दलों के नेताआें के साथ विचार विमर्श कर राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए सभी की सहमति से एक मजबूत उम्मीदवार मैदान में उतारना चाहती हैं। वहीं उपराष्ट्रपति पद के लिए भी विपक्ष का साझा उम्मीदवार मैदान में उतारने की योजना भी बन रही है।
राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर सोनिया गांधी ने विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने का एक और प्रयास शुरू कर दिया है। यहीं कारण है कि वह इस सिलसिले में ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ खास बैठक के लिये उतावली भी हैं। सोनिया-ममता के बीच बातचीत के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के साथ भी बैठक कर सकती हैं। बता दें कि वर्ष 2015 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को ममता बनर्जी ने तब कांग्रेस के जोरदार संघर्ष के लिए बधाई देते हुए कहा था कि आप अच्छा फाइट कर रही हैं। इस पर सोनिया ने कहा कि संघर्ष करना आप ही से सीखा है। सोनिया गांधी इससे पहले बिहार के मुख्यमंत्री व जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार एवं माकपा महासचिव सीताराम येचुरी के साथ बैठक कर चुकी हैं। इससे पहले 2012 में भी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर तृणमूल अध्यक्ष ममता बनर्जी का दिल्ली यात्रा से तब राजनीतिक हलकों में नई हलचल शुरू हो गई थी। ममता बनर्जी ने तब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात भी की थी।
वैसे राजनीति के जानकार मानते हैं कि दीदी का सियासी इतिहास बताता है कि वो तभी किसी भी गठबंधन का हिस्सा बनने के लिए तैयार तभी होंगी जब उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं की पूर्ति होने की उम्मीद रहे। सबसे बड़ा सवाल है कि जिस गठबंधन की सोच ही अवसरवादिता पर टिकी है, उसमें ममता जैसी अवसरवादी, महत्वाकांक्षी नेता अपने को कहां फिट कर पाएंगी ? अगर हम कांग्रेस के साथ उनके रिश्तों को गहराई से देखें तो सारा माजरा समझ में आ जाएगा। देखा जाये तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी के फैसले ने ममता बनर्जी को निजी तौर पर तिलमिला दिया। उन्होंने नोटबंदी के विरोध में ऐसे तेवर दिखाने शुरू किए मानो लगा कि इससे उन्हें निजी तौर पर बहुत ही बड़ी हानि हुई है। हालांकि नोटबंदी का विरोधी बाकी विपक्षी दल भी कर रहे थे, लेकिन ममता का विरोध कुछ अधिक ही मुखर था। इस मुद्दे पर कांग्रेस ने विपक्षी दलों की एक बैठक बुलाई थी जिसमें कई प्रमुख विपक्षी नेता नहीं पहुंचे, लेकिन दीदी कोलकाता से फौरी तौर पर दिल्ली पहुंची।