हों सकते हैं भूखमरी के शिकार, कर सकते हैं आनाज के लिये लूट

जगदीश यादव

कोलकाता। मोदी सरकार के  500 और 1000 के नोट बंद करने की घोषणा के बाद से जहां कालेधन को पोषकों की नींद उड़ गयी है वहीं नक्सलियों की भीं सांस फूलने लगी है। राज्य के एक वरीय आइपीएस अधिकारी ने नाम की गोपनियता पर कहा कि ये फैसला नक्सलियों की गतिविधियों को कमजोर करने में सबसे कारगर साबित होगा। आइपीएस अधिकारी ने बताया कि इससे नक्सलियों की रीढ़ टूट सकती है और हमे भी इस स्थिति का उनके दमन में फायदा मिलेगा। बेलपहाड़ी सह राज्य के तमाम नक्सल प्रभावित इलाकों के लोगों से बात करने पर व खास सूत्रों की माने तो एक सप्ताह में ही 500 और 1000के नोट बंदी से  नक्सलियों के करोड़ों रूपए के कचरे में बदलने की संभावना है। साथ ही उक्त स्थिति के कारण नक्सलियों से हमदर्दी रखनेवालों व  ऐय्याशी का जीवन जिने वाले लोगों की स्थिति आज दयनीय है। भले ही कानून ऐसे लोगों के खिलाफ कोई प्रमाण नहीं जूटा सकी है लेकिन स्थानीय ग्रामीणों व जानकारों का मानना है कि इस ऑपरेशंस से नक्सलियों के गढ़ में जाकर उनतक रुपये व अन्य सामान देने वालों की स्थिति अभी से ही देखने लायक हो गयी है। ऐसे लोग समझ नहीं पा रहें हैं कि क्या करें और क्या नहीं.। कारण राज्य के नक्सल प्रभावित इलाकों के जंगलों में अपना ठौर बनाकर रहने वालें नक्सलियों के पास नकद रुपये तो हैं लेकिन वह नोट पुराने है। साथ ही रसद कहें या फिर खाने पिने का सामान भी नहीं के बराबर है। ऐसे में उनके सामने भूखमरी का समय आ सकता है। नक्सल प्रभावित इलाकों के लोगों की माने तो अब नक्सली लोगों के घरों में हमला कर खाने पिने का सामान व नये नोटों की लूट के इरादे से हमला केरं तो हैरत की बात नहीं होगी। जंगलों में इनका काफी कैश मौजूद है। नक्सलियों ने जंगलों में पैसा गाड़ रखा है। सूत्रों की मानें तो नक्सली इन पैसों को जंगलों से बाहर लाने का प्रयास कर सकते हैं, जिस पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है। सूचना को सही माने तो झारखंड सह छत्तीस गढ़ के नक्सली अब बंगाल में अपने कथित घर या ठिकाने पर वापसी कर रहें हैं या वापसी के लिये मजबूर हैं कारण देश के प्राय सभी जगहों पर स्थिति एक जैसी है। ऐसे में नक्सलियों में फूट भी पड़ रहा है कि वह लोग सबसे पहले स्थानीय नक्सलिययों के लिये जरुरत के सामान जुटाएगें या अन्य राज्य से आये उनके साथियों के लिये।

Spread the love
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •