काफी संख्या में निराश ढाकिए लौटने लगे घर

फिरोज आलम/जयदीप यादव
कोलकाता। अगर बात दुर्गा पूजा की हो तो ढाकियों को परे नहीं रखा जा सकता है। राज्य के इस उत्सव के अभिन्न अंग बन चुके ढाकिये अब डीजे और रिकार्डिंग ढाक संगीत के कारण व्यापक तौर पर प्रभावित हुए हैं। दुर्गा पूजा का रिवाज है कि षष्ठी के दिन से सभी पूजा पंडालों में बड़ी संख्या में ढाकिए बड़े-बड़े ढोल लेकर एक खास धुन पर लगातार बजाते हैं। जब ढाकिया इस पर थाप देते हैं तो दुर्गा पूजा की गूंज सुनाई देने लगती है। सोमवार को षष्ठी है और आधिकारिक तौर पर इस दिन से सभी पूजा पंडालों में ढोल बजने लगेंगे। इसके पहले पंचमी यानी आज राज्य के विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में ढाकिए कालीघाट, हावड़ा और सियालदह स्टेशन के आस-पास पहुंच गए हैं। लेकिन इस बार जायादतर ढाकिये को निराशा का मुंह देखना पड़ रहा है। बर्दवान, मुर्शिदाबाद, बांकुड़ा, मालदा, पुरुलिया आदि सुदूर बंगाल के क्षेत्रों से सैकड़ों की संख्या में जुटे ढाकिए इस इंतजार में रेलवे स्टेशनों के आस पास की पूजा आयोजक इन्हें अपने साथ लेकर जाएंगे। तमाम ढकिये को तो पूजा में ढाक बजाने के लिये बयाना कर लिया गया लेकिन काफी संख्या में इन लोगों को निराशा ही हाथ लगी। कारण ऐसे दुर्गा पूजा कमेटियो की कमी नही है जहां पहले से रिकार्डिंग ढाक संगीत को ही बजाया जाएगा। नतीजन ढाक बजाने वालों को इस बार निराशा ही हाथ लग रही है। गौतम चंद्र दास, निताई हरि और सुकुमल की बात माने तो पूजा आयोजक उत्सव में करोड़ों खर्च कर देते हैं लेकिन ढांक वालों को पैसा देने में पता नहीं इन्हें क्यों परेशानी हो रही है। हमलोगों को ढाक के रिकार्डिंग संगीत ने मार दिया है ऐसे में हमलोगों को निराशा में घर वापसी करना पड़ रहा है। एक ढाकिया ने बताया कि पहले दुर्गा पूजा के आयोजक बड़े पैमाने पर खुशी-खुशी रुपये लूटाते थे। उन्हें मांगना भी नहीं पड़ता था, लेकिन अब कई पूजा पंडालों में उनसे मोलतोल किया जाता है। ऊपर से अगर मन मुताबिक पैसे पर ढोल बजाने के लिए तैयार नहीं हुए तो उन्हें लौटा दिया जाता है। कई ढाकियों को मजबूरन खाली हाथ अपने घर लौटना पड़ रहा है। हमे लोक शिल्पी के तौर पर पंजीकृत करने और भत्ता आदी की मांग राज्य सरकार उदसीनता का शिकार है।

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