मामले की लिखित जानकारी राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को दी

कोलकाता।  देश भर में मानवाधिकारों के धज्जियां जहां उड़ रही है वहीं मनवाधिकार पर चर्चा तो जारी है लेकिन जिस तरह से काम होना चाहिए नहीं हो रहा है। सबसे हैरत की बात है कि आज वर्षों से राज्य सरकार भी राज्य मानवाधिकार के चेयरमन के संधानिक पद के साथ अन्याय कर रही है। उक्त आरोप आज प्रोटेक्शन फार डेमोक्रेटिक ह्युमन राईट्स आफ इंडिया के अध्यक्ष डा. प्रदीप दुबे  ने एक कार्यक्रम में मीडिया कर्मियों के साथ बातचीत में लगाया । मानवाधिकार आयोग पश्चिम बंगाल सरकार डा. प्रदीप दुबे ने आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार राज्य मानवाधिकार के चेयरमन के संधानिक पद पर राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक नपराजित मुखर्जी को मनोनित किया है जो कि गैर संविधानिक है। इस पद पर राज्य सरकार नियम के अनुसार कोलकाता हाई कोर्ट के किसी पूर्व न्यायधिश को मनोनित करें। अगर ऐसा नहीं होता है तो हमलोग जन आन्दोंन के लिये बाध्य होंगे। कारण राज्य में उक्त स्थिति के कारण मानवाधिकार की व्यवस्था प्रभावित हो रही है। श्री दुबे ने कहा कि वैसे उन्होंने मामले की लिखित जानकारी काफी समय पहले राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भी दी है।

 बता दें कि 2013 के अक्टूबर माह में राज्य सरकार ने राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक नपराजित मुखर्जी को राज्य मानवाधिकार आयोग का सदस्य मनोनीत किया था। उस समय भी  विरोधी दल के नेता डॉ मिश्र ने पूर्व पुलिस महानिदेशक को राज्य मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष मनोनीत करने पर आपत्ति जतायी, लेकिन कमेटी में बहुमत राज्य सरकार के होने के कारण श्री मुखर्जी के मनोनयन पर मुहर लग गया। इसके पहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में सीबीआइ के पूर्व अध्यक्ष को सदस्य मनोनीत करने पर विवाद उत्पन्न हुआ था।  इसी तरह से राज्य मानवाधिकार आयोग का सदस्य किसी पुलिस अधिकारी को मनोनीत नहीं किया जा सकता है। उन्होंने इसका विरोध किया है डॉ. मिश्र ने कहा था कि तात्कालीन पुलिस महानिदेशक के रूप में राज्य पुलिस के खिलाफ कई मामले विचाराधीन हैं। प्रोटेक्शन फार डेमोक्रेटिक ह्युमन राईट्स आफ इंडिया के अध्यक्ष डा. प्रदीप दुबे  ने कहा कि मामले पर 10 दिसम्बर विश्वमानवाधिकार दिवस पर आसमपुर में वार्षिक सम्मेलन में उक्त विषय पर गंभीर तौर पर चर्चा होगी।

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