राज्य सरकार ने किया जल संरक्षण योजना के कारगार होने का दावा

कोलकाता। राज्य की बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आज जहां न्यजीव सुरक्षा व वन संरक्षण के लिए प्रतिबद्धता जतायी तो वही राज्य सरकार द्वारा बंगाल सरकार की जल संरक्षण योजना का व्यापक तौर पर कारगार होने का दावा किया गया है। विश्व वन्यजीव दिवस के अवसर पर आज मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि बंगाल सरकार वन्यजीव सुरक्षा और वन संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है और पिछले सात सालों से उक्त कार्य कर रही है।वन और वन्यजीव को राज्य की संपत्ति बताते हुये ममता ने कहा कि शानदार जैव विविधता के संरक्षण की जिम्मेदारी सभी की है। ममता ने ट्वीट किया, ‘‘वन और वन्यजीव हमारी संपदा हैं। इस शानदार जैव-विविधता का संरक्षण हमारी जिम्मेदारी है। बंगाल में हमारी सरकार पिछले सात सालों से वन्यजीव की सुरक्षा और जंगलों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। विश्व पर्यावरण दिवस।’’ संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने 20 दिसंबर 2013 को तीन मार्च को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था। वहीं राज्य सरकार ने दावा किया है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा जल संरक्षण के लिए शुरू की गई “जल धरो, जल भरो” योजना रोजगार सृजन और जल संरक्षण के मामले में अव्वल साबित हुई है। रविवार को राज्य पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग की ओर से इस बारे में बयान जारी कर दावा किया गया है। बताया गया है कि राज्य पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग द्वारा शुरू की गई जल धरो जल भरो योजना, बंगला में चालू वित्त वर्ष के दौरान अब तक 2.62 लाख लोगों को फरवरी महीने के अंत तक जल संरक्षण के लिए काम पर लगा चुकी है। वित्तीय वर्ष 2018-19 में, 29,135 जलाशयों को खोदा और पुनर्निर्मित किया गया है। विभाग की ओर से बताया गया है कि जल धरो जल भरो परियोजना को आधिकारिक तौर पर 2011 में शुरू गया था, जिस साल तृणमूल कांग्रेस ने राज्य सरकार की कमान संभाली थी। उसके बाद से आज तक यह राज्य की ग्रामीण आबादी के लिए एक बड़ा वरदान रहा है। परियोजना का मुख्य उद्देश्य जल संरक्षण है। इस परियोजना के तहत कई टैंकों, तालाबों, जलाशयों और नहरों का निर्माण किया गया है। परियोजना का एक प्रमुख बिंदू जलाशयों के निर्माण के लिए रोजगार प्रदान करना है। जो लोग नहरों की खुदाई में लगे हुए हैं, उन्हें 100-दिवसीय कार्य योजना (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) के तहत काम मिल रहा है। इन जलाशयों का उपयोग मछली और जानवरों के पालन और सिंचाई के लिए किया जाता है। 2,305 लघु सिंचाई परियोजनाओं की सहायता से, अब तक 74,606 हेक्टेयर भूमि को सिंचाई के तहत लाया गया है। इस योजना के परिणामस्वरूप बीरभूम, बांकुड़ा, पुरुलिया, झाड़ग्राम और पश्चिम मेदिनीपुर जिलों के विशाल क्षेत्रों को सिंचाई के जल मिलना सुनिश्चित किया गया है। वहां 786 लघु सिंचाई परियोजनाओं की मदद से 25,319 हेक्टेयर भूमि को सिंचाई के तहत लाया गया है। इन जिलों में, उचित जल उपयोग ने धान की खेती में वृद्धि और कई फलों के बाग लगाने की सुविधा प्रदान की है।

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