ममता बनर्जी से  60 हजार करोड़ का हर्जाना मांगने की तैयारी

कोलकाता/ सिलीगुड़ी। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी पर चौतरफा हमले हो रहें हैं। एक ओर जहा गोरखालैण्ड की मांग उनके लिये नाक का नासूर बन चुका है तो वहीं बादुरिया में हिसा और उनके छह विधायकों का भाजपा की ओर जाना। अब सिक्किम सरकार ने पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार से 60,000 करोड़ रुपये बतौर जुर्माना मांगने का निर्णय लिया है। सिक्किम सरकार जल्द ही इस मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाली है। सिक्किम सरकार का दावा है कि पिछले 32 सालों में गोरखालैंड आंदोलन की वजह से सिक्किम को करीब 60 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ है। यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब एक दिन पहले ही सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग ने पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी में सिक्किम की बसों में हुई तोड़फोड़ की निंदा की थी।
एक कार्यक्रम में सीएम पवन कुमार चामलिंग ने कहा कि सिक्किम के लोग चीन और पश्चिम बंगाल के बीच सैंडविच बनने के लिए भारत में शामिल नहीं हुए हैं। मुख्यमंत्री चामलिंग ने गोरखालैंड के रूप में एक अलग राज्य की मांग का समर्थन किया है और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखकर दार्जिलिंग पहाड़ियों के लोगों की “उचित लंबित मांग” पर कार्रवाई करने को कहा है।
चामलिंग के इस कदम के बाद ही पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी में सिक्किम में रजिस्टर्ड गाड़ियों पर हमले शुरू हुए। इसके साथ ही चामलिंग ने लोगों को आश्वस्त किया है कि गोरखा मूवमेंट की वजह से रोड जाम होने की सूरत में परेशान होने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार लोगों तक जरूरी सामान और खाने-पीने की चीजों की सप्लाई सुनिश्चित कराएगी।
बता दें कि गोरखा जनमुक्ति मोर्चा पृथक राज्य की मांग को लेकर पिछले करीब एक महीने से अनिश्चितकालीन बंद पर है। दार्जिलिंग सहित पूरे पहाड़ी इलाके में निषेधाज्ञा लागू है और जूलूस निकालने पर बैन है। शुरुआती हिंसा और उग्र तेवर के बाद गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के आंदोलनकारियों ने अब लोकतांत्रिक आंदोलन की राह पकड़ ली है। अबकी मोर्चा के रुख, आंदोलन में स्थानीय लोगों की भागीदारी और राज्य सरकार व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के रुख को देखते हुए लगता है कि न तो अलग गोरखालैंड की राह आसान राह है और न ही इलाके में शांति बहाल होने की। वर्ष 1986 में गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के प्रमुख सुभाष घीसिंग ने जब अलग गोरखालैंड की मांग में हिंसक आंदोलन छेड़ा था तब उन्होंने स्थानीय लोगों की भावनाओं में विस्फोट कर दिया था। उनके उस आंदोलन को शुरुआती दौर में स्वत:स्फूर्त समर्थन मिला था। यही वजह है कि घीसिंग ने केंद्र व राज्य सरकार को अपने इशारे पर नचाया।
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