सिन्दूर के रंग में फिका हुआ हिंसा का चेहरा

जगदीश यादव

कोलकाता। राज्य के उत्तर चौबीस परगना के बादुरिया व बसीरहाट में सांप्रदायिक नफरत की आग धधक रही है और वहां लोगों को जहां अपनी जिन्दगी की पड़ी है। ऐसे में वहां जहां उपासना स्थालों में लोग सामुहिक तौर पर जमा होकर उपसाना नहीं कर पा रहें है तो शहनाई और उलू ध्वनि की बात भी बेईमानी लगती है। लेकिन यकिन मानिये इस नफरत की आग के बीच भी सात फेरे की अग्नि प्रज्जवलित हुई और दो जवां दिल विवाह के पवित्र बंधन में बंधकर सदा के लिये एक दूजे के हों गये।  लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था। सुनसान बसीरहाट, गश्त लगाते आर्मी के जवान और बंद दुकान पाट के वजह से स्थानीय निवासी जयश्री राय की शादी लगभग टलते-टलते रह गई। युवती बड़ी बेसब्री से अपने होने वाले पति यानी दूल्हे की बाट जोह रही थी। शादी के सूर्ख लाल जोड़े में दुल्हन बनी जयश्री और उसके घरवालों का दुल्हे का इंतजार हर पल जैसे एक एक साल का लग रहा था। विवाह स्थल के बाहर कोई आहट होती तो जयश्री के पिता प्रशांत राय दौड़कर बाहर आते कि क्या उनका होने वाला दामाद आ गया है। तमाम बार निराशा ही हाथ लगी। लेकिन वह पल भी आया जब जयश्री का दुल्हा अपने कुछ परिजनों के साथ बस से आ ही गया, फिर क्या था। शादी से पहले ही उलू ध्वनि और शांखनाद होने लगे। जयश्री का होने वाला पति मुंबई में काम करता है और उसे चुपके-चुपके बस में आना पड़ा। लेकिन आख़िरी समय में दुल्हे के आते ही सब विवाह संस्कार के कार्य में जुट गए। पुरेहित महोदय ने जल्दी जल्दी मंत्रोच्चारण शुरु कर दिया और उलू ध्वनि और शांखनाद होने लगे।  बस 400 की जगह मुट्ठी भर मेहमानों के बीच हुई शादी हुई और जयश्री की मांग तमाम इंतजार और एक अजीब तनातनी के माहौल में सिन्दूर से दुल्हे ने भर दी। अब जयश्री को इंतजार था पिया के घर मायानगरी यानी मुम्भई जाने का।

 

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