कोलकाता। सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर पर चार डॉक्टर्स की टीम पुलिस के साथ गुरुवार को कोलकाता हाईकोर्ट के जस्टिस सीएस कर्णन के घर पहुंची है। इस पर जस्टिस कर्णन ने किसी भी तरह का मेडिकल टेस्ट कराने से इनकार कर दिया।। उन्होंने डॉक्टर्स को लिखकर दिया कि वो बिल्कुल ठीक हैं। अवमानना मामले का सामना कर रहे जस्टिस कर्णन का मेंटल चेकअप कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड बनाने का ऑर्डर दिया था। चेकअप के बाद 8 मई तक मेडिकल रिपोर्ट देनी है। परिवार वाले नहीं हैं, इसलिए टेस्ट नहीं किया जा सकता।
खबरों के मुताबिक, जस्टिस कर्णन ने डॉक्टरों को लिखकर दिया, “मैं बिल्कुल ठीक हूं और दिमाग स्थिर है, इसलिए मैं मेडिकल ट्रीटमेंट से इनकार करता हूं। आगे मेरा सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर को लेकर सख्ती से मानना है कि यह जज (खुद) की इन्सल्ट और हैरेसमैंट है।”
उन्होंने डॉक्टर्स से कहा इस तरह के मेडिकल चेकअप के लिए मरीज के साथ गार्जियन्स का होना जरूरी है। चूंकि मेरे परिवार के लोग यहां नहीं हैं, तो कोई मेडिकल टेस्ट नहीं हो सकता।जस्टिस कर्णन ने कहा कि उनकी पत्नी और बेटा चेन्नई में हैं। एक और बेटा है जो फ्रांस में जॉब कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन से उनके खिलाफ जारी अवमानना नोटिस का 8 मई तक जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि अगर जवाब नहीं दिया गया तो यह माना जाएगा कि उनके पास इस मुद्दे पर कहने के लिए कुछ नहीं है।बता दें कि इस मामले में 31 मार्च को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन को 4 हफ्ते में अपना जवाब दाखिल करने का ऑर्डर दिया था।
उम्मीद थी कि जस्टिस कर्णन या तो माफी मांगेंगे या फिर लगाए गए आरोपों पर कायम रहेंगे। लेकिन सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान वो कोर्ट में हाजिर ही नहीं हुए।
31 मार्च को पेशी के दौरान जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट की बेंच से कहा था कि आप मेरा ज्यूडिशियल कामकाज बहाल कर दें, नहीं तो मेरी दिमागी हालत सही नहीं हो पाएगी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हम देख रहे हैं उनकी (जस्टिस कर्णन) दिमागी हालत ठीक नहीं लगती और उन्हें समझ भी नहीं आता कि हकीकत में वो क्या कर रहे हैं। कोर्ट ने उनकी मांग खारिज कर दी थी। इसके बाद उन्होंने इस मामले की सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट के सातों जजों के खिलाफ ऑर्डर जारी कर दिया था। जस्टिस कर्णन का आरोप था कि इन जजों ने ‘प्रिंसिपल ऑफ नैचुरल जस्टिस’ का वॉयलेशन किया है। जस्टिस कर्णन ने 23 जनवरी को पीएम को लेटर लिखकर 20 जजों पर करप्शन का आरोप लगाया था। इनमें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज और मद्रास हाईकोर्ट के मौजूदा जज शामिल हैं। जस्टिस कर्णन ने इस मामले की जांच कराने की मांग की थी।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 8 फरवरी को जस्टिस कर्णन को नोटिस जारी पूछा था कि क्यों न इसे कोर्ट की अवमानना माना जाए। कोर्ट ने उन्हें मामले की सुनवाई होने तक सभी ज्यूडिशियल और एडमिनिस्ट्रिेटिव फाइलें कलकत्ता हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को लौटाने को कहा था।
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन को 13 फरवरी को कोर्ट में पेश हाेने को कहा था, लेकिन वो हाजिर नहीं हुए। बता दें कि यह पहला केस था जब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के मौजूदा जज को अवमानना का नोटिस भेजा था।
चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अगुआई वाली सात जजों की बेंच ने 10 मार्च को जस्टिस कर्णन के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया था। उन्हें 31 मार्च को कोर्ट में हाजिर करने का ऑर्डर दिया गया था। कर्णन सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार को लेटर लिखकर यह आरोप भी लगा चुके हैं कि दलित होने की वजह से उन पर यह एक्शन लिया जा रहा है। उन्होंने अपने लेटर में लिखा था, “यह ऑर्डर (सुप्रीम कोर्ट का नोटिस) साफ तौर पर बताता है कि ऊंची जाति के जज कानून अपने हाथ में ले रहे हैं और अपनी ज्यूडिशियल पावर का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं।”
जस्टिस कर्णन 2011 में मद्रास हाईकोर्ट में जज थे। उस वक्त उन्होंने एक साथी जज के खिलाफ जातिसूचक शब्द कहने की शिकायत दर्ज कराई थी।
2014 में मद्रास हाईकोर्ट में जजों के अप्वाइंटमेंट को लेकर वो तब के चीफ जस्टिस के चेंबर में घुस गए थे और बदसलूकी की थी।
इसके अलावा, जस्टिस कर्णन ने उन्हें मद्रास हाईकोर्ट से कलकत्ता हाईकोर्ट ट्रांसफर करने पर इस मामले की खुद सुनवाई शुरू कर दी थी।
बाद में इसके खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन लगाई थी। यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है।

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