13 जगहों पर ट्यूबलाइट रैली निकालकर किया विरोध प्रदर्शन
पीठ पर टयूबलाइट तोड़ दिया रक्तपात का संकेत दिया

दार्जिलिंग। अलग गोरखालैंड की मांग को लेकर पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में आंदोलनरत गोरखा कार्यकर्ताओं ने वर्ष 2011 में हस्ताक्षरित गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) की प्रतियां जलायी और राज्य सरकार के साथ किसी प्रकार के जुड़ाव को खारिज करते हुये कहा कि अब इस आंदोलन को और तेज किया जायेगा। जीटीए कार्यकर्ताओं ने मंगलवार को दार्जिलिंग में 13 जगह ट्यूबलाइट रैली निकालकर अनूठा विरोध प्रदर्शन किया। इसमें उन्होंने अपनी पीठ पर तब तक टयूबलाइट तोड़ी जब तक खून नहीं निकल गया। उन्होंने इस का संकेत दिया कि वे रक्तपात के लिए भी तैयार हैं। एक तरफ जहां अर्ध्य -सैनिक बल और पुलिस के जवान सड़कों पर दोनों ओर तैनात थे, वहीं हजारों गोरखा समर्थक चौरास्ता के समीप एकत्र हुए और त्रिपक्षीय जीटीए समझौते की प्रतियों को आग लगा दी। इस मौके पर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ( जीजेएम ) के सहायक सचिव विनय तमांग ने जीटीए समझौते की प्रतियां जलाये जाने की घोषणा की। उन्होंने कहा, हमने अर्ध्य -स्वायत्तशासी संघ का अंतिम संस्कार कर दिया और पश्चिम बंगाल के साथ संबंध तोड़ दिया है तथा जीटीए चुनाव उम्मीदवार अपने जोखिम पर लड़ेंगे। तमांग ने कहा, हम भविष्य में जीटीए चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे क्योंकि अब हम अलग राज्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जीजेएम की युवा इकाई के नेता प्रकाश गुरुंग द्वारा कल पृथक राज्य मांग को लेकर आत्मदाह की धमकी दिए जाने के बाद सुरक्षा कर्मी आंदोलनकारियों की हर गतिविधियों पर निगरानी रखे हुए हैं। तमांग ने कहा, हमें जब तक पृथक राज्य नहीं मिल जाता, हमारा अनिश्चितकालीन बंद जारी रहेगा।
इस बीच राज्य के पर्यटन मंत्री गौतम देव ने सिलीगुड़ी में संवाददाताओं से कहा कि गोरखा कार्यकर्ता एक लोकतांत्रिक देश में आग से खेल रहे हैं। जीटीए समझौते की प्रतियां जला देने का यह मतलब नहीं कि जीटीए समाप्त हो गया। अगले जीटीए के लिए चुनाव आगामी दो अगस्त से पहले हो जायेगा। गोरखालैंड आंदोलन की मांग को लेकर दार्जिलिंग हिल्स में अनिश्चिकालीन बंद के आज 16वें दिन जीटीए समझौते की प्रतियां जलाये जाने अैर नारे लगाने की घटना को छोड़कर स्थिति नियंत्रण में रही। दार्जिलिंग हिल्स में एक अद्र्ध-स्वायत्त संघ के गठन के लिए 18 जुलाई 2011 को केंद्र एवं राज्य सरकार और जीजेएम के बीच जीटीए समझौता हुआ था। जीजेएम के अध्यक्ष विमल गुरुंग का कहना है कि उनके पास दो ही विकल्प हैं, जिनमें पहला भारतीय गोरखाओं के लिये अलग राज्य अथवा इसके लिये अपनी जान दे देना है।

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