कोलकाता / त्रिपुरा। पश्चिम बंगाल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सत्ता के आगे विरोधियों की एक नहीं ल रही है। ऐसे में सीपीआईएम ने दावा किया है कि राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस सीपीआईएम के 684 पार्टी कार्यालयों पर कब्जा कर लिया है। है। दूसरी ओर, सीपीआईएम के शासन वाले त्रिपुरा में हाल ही में मुख्य विपक्षी दल के तौर पर उभरी टीएमसी का आरोप है कि राजधानी अगरतला में उसके एकमात्र पार्टी कार्यालय को बंद करवाने के लिए सभी कोशिशें की जा रही हैं। त्रिपुरा में टीएमसी के मामलों के प्रभारी और सांसद मुकुल रॉय ने 30 जून को अगरतला में पार्टी के कार्यालय का उद्घाटन किया था। त्रिपुरा में टीएमसी के नेता और विधायक आशीष साहा ने बताया, ‘अगरतला म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन (एएमसी) ने हमें एक डिमॉलिशन नोटिस देकर कहा है कि जिस इमारत में हमारा राज्य का मुख्यालय है, वह अवैध है और उसे गिरा दिया जाएगा।’

त्रिपुरा में टीएमसी के प्रमुख सुदीप रॉय बर्मन का कहना है कि राज्य में सरकार चलाने वाली सीपीआईएम इमारत को गिराने के लिए पूरा जोर लगा रही है क्योंकि वह ममता बनर्जी से डरी हुई है। उन्होंने कहा, ‘ममता आगामी विधानसभा चुनाव में बड़ी चुनौती देने की तैयारी में हैं। इसलिए राज्य सरकार हमें कार्यालय चलाने से रोकने के लिए सभी कोशिशें कर रही है। ‘ इधर कांग्रेस के 10 विधायकों के टीएमसी में शामिल होने के बाद त्रिपुरा में ममता की पार्टी को मुख्य विपक्षी दल माना जा रहा है। विधायकों के अलावा कांग्रेस के प्रमुख पदाधिकारी भी टीएमसी में शामिल हो गए हैं। बर्मन ने बताया, ‘त्रिपुरा के ग्रामीण इलाकों में सीपीआईएम टूट रही है। इन इलाकों में सीपीआईएम के बहुत से प्रमुख पदाधिकारी हमारे संपर्क में हैं और विधानसभा चुनाव से पहले हमारी पार्टी में शामिल हो जाएंगे। मुख्यमंत्री माणिक सरकार और सीपीआईएम के नेताओं को इसकी जानकारी है और वे हमें त्रिपुरा में पार्टी चलाने से रोकने के लिए अपना पूरा जोर लगा रहे हैं। ‘ एएमसी के मेयर प्रफुल्ल जीत सिन्हा के आरोप है कि इमारत अवैध है और उसके मालिकों को नोटिस दिया गया है। उन्होंने टीएमसी के नेताओं के इमारत को गिराने का कदम राजनीति से प्रेरित होने के आरोप को गलत बताते हुए कहा, ‘हमने अगरतला में 18 इमारतों के मालिकों को डिमॉलिशन नोटिस दिए हैं और इनमें टीएमसी कार्यालय की इमारत भी शामिल है। इन सभी इमारतों का कंस्ट्रक्शन गैर कानूनी तरीके से किया गया है। ‘ इमारत के आठ मालिकों में से एक और मौजूदा विधायक आशीष साहा के मुताबिक, ‘इंदिरा भवन नाम की इस इमारत को कंस्ट्रक्शन 1970 में हुआ था और अब यह जर्जर हालत में है। जब मैं कांग्रेस में था तो इस इमारत का इस्तेमाल करता था। हमने इसकी मरम्मत कराने का फैसला किया है। हम बिल्डिंग के प्लान में कोई बदलाव नहीं कर रहे। ‘ खैर जो भी हो लेकिन राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप का दौर तो चलता ही रहता है।

Spread the love
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •  
  •