जगदीश यादवjagdish chasma

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कोलकाता। अगर आपको यह जानना हो कि एक जनवरी 2018 का प्रथम दिन कौन सा वार होगा तो आपको दीवार पर टंगे कैलण्डर की ओर नजर उठना पड़ेगा।  पूजा-पाठ से लेकर तारीख जानने के लिये कैलेण्डर के शरण में जाना ही पड़ता है। लेकिन हैरत की बात है कि अब कैलेण्डर की बिक्री में कमी आ रही है। जी हां ऐसा हम नहीं वरन कैलेण्डर बेचने वालों का ही कहना है। बड़ाबाजार से लेकर माहानगर कोलकाता के तमाम जगहों पर लगभग यही हालात है। कैलेण्डर बेचने वाले रमजान अली व शिवजी राय की माने तो अब तो कैलेण्डर की बिक्री में काफी कमी आय़ी है। indian-calendar-2018 (1)इसका सबसे कारण है कि अब लोग अपने घरों की दीवार पर कैलेण्डर लटकाना नहीं चाहते हैं। जबकि  सबसे बड़ा कारण तो यह है कि इंटरनेट की दुनियां ने कैलेण्डर को जिस तरह से अपने में समेट लिया है इससे लोग अब अपने मोबाइल फोन, टैब व कम्प्यूर में ही पर्व त्यौहार से लेकर दिन वार ही नहीं नक्षत्र के बारे में जानकारी ले लेते है। रही बात राशिफल की तो अब तो इंटरनेट पर राशिफल ही नहीं कुण्डली भी भी जानी जा सकती है। मामले पर विजय कुमार उपाध्धाय शास्त्री ने कहा कि अब लोग ही कैलेण्डर दीवार पर नहीं टांगना चाहते हैं। इंटरनेट के कारण अब पर्व त्यौहार के लिये आम आदमी पुरोहित पर ही निर्भर नहीं है। कैलेण्डर छापने वाले अर्घ्य मैत्रा सहित तमाम प्रिंटरों की माने तो मात्र दो वर्षों में कैलेण्डर की मांग में 50 प्रतिशत की गिरावट आई है। पहला सबसे बड़ा कारण इंटरनेट का व्यापक स्तर पर उपयोग है तो दुसरा कारण जीएसटी भी है। एक समय था जब कैलेण्डर नहीं थे। लोग अनुभव के आधार पर काम करते थे। उनका यह अनुभव प्राकृतिक कार्यों के बारे में था। वर्षा, सर्दी, गर्मी, पतझड़ आदि ही अलग-अलग काम करने के संकेत होते। सूर्योदय होने से लेकर सूर्यास्त तक की अवधि को ‘दिन’ का नाम दिया गया। यह भी अनुभव किया गया कि मौसम सूर्य के कारण बदलते हैं। चंद्रमा का चक्र नए चाँद से नए चाँद तक माना गया। सूर्य का चक्र एक मौसम से दूसरे मौसम तक माना गया। चंद्रमा का चक्र साढ़े उन्तीस दिन में पूरा होता है। उसे ‘महीना’ कहा गया। सूर्य के चारों मौसम को मिलाकर ‘वर्ष’ कहा गया। फिर गणना के लिए ‘ कैलेण्डर ‘ या ‘पंचांग’ का जन्म हुआ। अलग-अलग देशों ने अपने-अपने ढंग से कैलेंडर बनाए क्योंकि एक ही समय में पृथ्‍वी के विभिन्न भागों में दिन-रात और मौसमों में भिन्नता होती है। लोगों का सामाजिक जीवन, खेती, व्यापार आदि इन बातों से विशेष प्रभावित होता था इसलिए हर देश ने अपनी सुविधा के अनुसार कैलेण्डर बनाए।रोम का सबसे पुराना कैलेंडर वहाँ के राजा न्यूमा पोंपिलियस के समय का माना जाता है। यह राजा ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी में था। आज विश्वभर में जो कैलेंडर प्रयोग में लाया जाता है। उसका आधार रोमन सम्राट जूलियस सीजर का ईसा पूर्व पहली शताब्दी में बनाया कैलेण्डर ही है। जूलियस सीजर ने कैलेंडर को सही बनाने में यूनानी ज्योतिषी सोसिजिनीस की सहायता ली थी। इस नए कैलेण्डर की शुरुआत जनवरी से मानी गई है। इसे ईसा के जन्म से छियालीस वर्ष पूर्व लागू किया गया था। जूलियस सीजर के कैलेंडर को ईसाई धर्म मानने वाले सभी देशों ने स्वीकार किया। उन्होंने वर्षों की गिनती ईसा के जन्म से की। जन्म के पूर्व के वर्ष बी.सी. (बिफोर क्राइस्ट) कहलाए और (बाद के) ए.डी. (आफ्टर डेथ) जन्म पूर्व के वर्षों की गिनती पीछे को आती है, जन्म के बाद के वर्षों की गिनती आगे को बढ़ती है। सौ वर्षों की एक शताब्दी होती है। अब दुनियो के सभी देश अब एक समय मानते हैं और आपस में तालमेल बिठाकर घड़ियों का तालमेल रखते हैं। कहा जाता है कि ग्रेगोरीयन कैलेण्डर का आविष्कार पोप ग्रेगरी XIII ने अक्टूबर 1582 में किया गया था

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