आज भी होता है नम पलकों निष्पाप रस्म का निर्वाह

जगदीश यादव
कोलकाता। चार दिन की पूजा के बाद उमा (दुर्गा) विजयदशमी के दिन अपने ससुराल (कैलाश पर्वत) लौटी गई। वैसे तो अब यह परम्परा नीलकंठों के अभाव में गुजरे समय की कहीं बात न हो जाये। वियजदशमी के दिन महामाया दुर्गतनाशिनी दुर्गा को जब विदा किया गया तो नीलकंठ पक्षी की चोंच को गंगाजल से भरकर उन्हें उन्मुक्त आकाश की उड़ाया भी गया। एक ओर पहले से ही महामाया के जाने का दुख उपर से नीलकंठ उन्मोचन की परम्परा। यह परम्परा ठीक उस दर्द को और ज्यादा पुख्ता करती जिस दर्द को किसी लड़की के मायके वाले सहते हैं। जैसे ही नीलकंठ उड़ता हैं, चेहरे पर विषाद की परछाई, आंख आसुओं से डबडबा जाती है। जब नीलकंठ श्रद्धालुओं की आंखों से ओझल हो जाता है तो माना जाता है कि उमा (दुर्गा) ससुराल (कैलाश पर्वत) लौटी गई हैं। फिर तो कई दिनों तक धरती के लोग उमा के जाने के दर्द को आत्मसात करते हैं। माना जाता है कि नीलकंठ धरती से उड़ कर कैलाश के शिखर तक जाता है। मां के पहुंचने से पहले कैलाशवासी भगवान शिव को मां के मयके से ससुराल वापसी की सूचना से देता है। जब नीलकंठ श्रद्धालुओं की नजरों से ओझल हो जाता है तो श्रद्धालु मान लेते हैं कि मां कैलाशवासिनी हुईं। इस भावपूर्ण विदा के बाद सभी भीगी पलकों से उत्तर दिशा की ओर निहारते हुए प्रणाम करते हैं।यह अलग बात है कि, आज नीले गले वाले नीलकंठ को पकड़ना या खरीदना अवैध है। लेकिन, प्रशासन की नजरों से बचते हुए कई जगहों पर नीलकंठ पक्षियों के उड़ने का रिवाज आज भी पालन किया जाता है। अपने नीले रंग के कारण, नीलकंठ पक्षी को सनातन धर्म में भगवान शिव का सेवक माना जाता है। विजयदशमी के दिन दुर्गा मूर्ति के विसर्जन पहले नीलकंठ पक्षी को उड़ाने की प्रथा इस मान्यता पर आधारित है कि नीलकंठ पक्षी महादेव को पार्वती के आगमन की सूचना देने के लिए सबसे पहले कैलाश जाएगा। धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि, दशहरे के दिन राम ने रावण को मारने से पहले नीलकंठ पक्षी के दर्शन किए थे। इसलिए कई जगहों पर दुर्गा पूजा की दशमी या दशहरा के दिन नीलकंठ पक्षी के दर्शन करना शुभ माना जाता है। आज तो लोग एक दूसरे को दशमी के दिन व्हाट्सएप पर नीलकंठ पक्षियों की तस्वीरें भेजकर शुभकामनाएं देते हैं। लेकिन यह पक्षी धीरे-धीरे विलुप्त हो रहा है। उत्तर भारत में बहुत से लोग नीलकंठ पक्षी को देखकर कहते हैं, ‘नीलकंठ तुम नीले रहो, दूध भात का भोज करो, हमरी बात राम से कहियो।’

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