पाकेटमारी व झपटमार के शिकार होते रहें पुण्यार्थी

जाकिर अली/ओबादुल्ला लस्कर

(फोटो- रमेश राय)

सागरद्वीप। मोक्षनगरी गंगासागर में सैंकड़ों ऐसे लोग थें जिनके लिये गंगासागर की तीर्थयात्रा दुखद यात्रा बन गई थी। ऐसे लोगों का कहना था कि अब हमे पता चला है कि सब तीर्थयात्रा बार-बार व गंगासागर एक बार क्यों कहा जाता है। उक्त लोग ऐसे भुक्तभोगी थें जो मेले में चोरी, पाकेटमारी व झपटमार के शिकार हो गये  थें। इनलोगों का कहना था कि हम सपने में भी नहीं सोच सके थें कि कपिलमुनि बाबा के दरबार में आकर हम लूट के शिकार हो जाएगें। मेले में ऐसे लोगों को रोते व कलपते देखा जा सकता है। कई लोगों के रुदन कलाप को देखकर तो किसी की भी आंख भर सकती है लेकिन पुलिस व्यवस्था का हाल तो यह है कि सागर तट से मात्र कुछ मीटर की दूरी पर सागर अस्थायी कोस्टल थाना है लेकिन लोगों की माने तो यहां हर दस मीनट में चोरी, पाकेटमारी व झपटमार की एक घटना घट रही है। हमारे संवाददाता को उत्तर प्रदेश के कानपुर स्थित ग्वालटोली की निवासी अपनी भाभी गीता तिवारी के साथ आयी राजकुमारी तिवारी का सामान व रुपये गंगासागर तट से एक दस वर्षीय बच्चे ने पलक झपकते गायब कर दिया। ननद व भाभी के उक्त बच्चे ने 3800 रुपये भी उड़ा दिये जो कि बजरंग परिषद की शिविर में बैठकर लगातार दोनों महिलाएं रोये जा रही थी। ऐसे में परिषद के लोगों ने इन्हें पैसे व कपड़े दिये व खाना खिलाकर पुलिस के साथ उन्हें उनके घर उत्तर प्रदेश के लिये रवाना कर दिया। इसी तरह बिहार के छपरा के निवासी चंदन साव व रघु साव को भी यहां झपटमार का शिकार होना पड़ा।उन्होंने बताया कि झपटमार कुल 9 हजार रुपये, मोबाइल फोन व बैग में रहे अन्य वह सामान ले गये । उपरोक्त तरह की घटनाएं पुलिस प्रशासन के उक्त दावों का मजाक उड़ा रही जिन दावों के तहत पुख्ता व्यवस्था का राग राज्य के मंत्री सुब्रत मुखर्जी से लेकर ही नहीं जिले के डीएम डा. पी उल्गानाथन कई बार अलाप चुके हैं। सबसे बड़ी बता तो यह है कि इस तरह की घटनाएं गंगासागर मेले के लियेकोई नई बात नहीं है लेकिन बावजूद पुलिस पाकेटमारों औऱ झफटमारों से निपटने के लिये आधुनिक व्यवस्था कहे या तकनीक का सहारा नहीं ले सकी है। जिला प्रशासन को कुंभ सहित उन बृहद मेले में पाकेट मारों व झपट मारों को कुछ ही समय में दबोचने की जो तकनीक है दक्षिण चौबीस परगना पुलिस उसका सहारा क्यों नहीं लेती है यह भी सवाल आम पुण्यार्थी उठाते दिखें।

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