उपभोक्ता मामलों के मंत्री साधन पांडे ने की चिंता व्यक्त

कोलकाता। सारदा घोटाले ने एक तरह से राज्य के तमाम लोगों की कमर ही तोड़ दी थी। लेकिन आरोप है कि कई साल तक मरणासन्न रहा चिटफंड पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र में इस बार ” कृषि योजनाओं ” के नये अवतार में वापस लौट आया है। लोग इसके शिकार भी हों रहें हैं। उपभोक्ता मामलों के विभाग ने इन चिटफंड योजनाओं के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया है। ये योजनाएं बंगाल के विभिन्न हिस्सों में छोटे स्तर पर चल रही हैं।उपभोक्ता मामलों के मंत्री साधन पांडे ने कहा, एक साल से अधिक समय से हमें इस बारे में बहुत सी शिकायतें मिल रही हैं कि निवेशकों को कृषि योजनाओं में लगाया गया उनका पैसा वापस नहीं मिल रहा या इसका गबन कर लिया गया। खासकर ग्रामीण बंगाल से ये शिकायतें मिल रही हैं। मंत्री ने कहा कि कुछ चिट फंड योजनाओं में आलू की खरीद पर निवेश पर भारी मुनाफे का वायदा किया गया तो कुछ अन्य में वृक्षारोपण या मुर्गी पालन पर निवेश करने से भारी मुनाफा मिलने का वायदा किया गया।

मंत्री के अनुसार, ये पोंजी योजनाएं सारदा या अन्य बड़ी चिटफंड कंपनियों की तरह नहीं हैं जो फिलहाल सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की निगरानी में हैं। अप्रैल 2013 में सारदा घोटाला सामने आने के बाद कई पोंजी योजनाएं बंद हो गई थीं और चिटफंड कंपनियों को अपना बोरिया बिस्तर समेटना पड़ा था क्योंकि केंद्रीय और राज्य की एजेंसियों ने ठगी के शिकार हुए लाखों निवेशकों के विरोध के बीच इस तरह की कंपनियों पर चाबुक चलाया था। उपभोक्ता मामलों के विभाग के अनुसार, ये चिटफंड कंपनियां इतने छोटे स्तर पर चल रही हैं कि कई बार स्थानीय प्रशासन के लिए इन्हें ढूंढ़ पाना मुश्किल हो जाता है। पांडे ने कहा है कि, उनका विभाग गरीब और भोले-भाले ग्रामीण लोगों को इन योजनाओं में निवेश के जोखिमों के बारे में अवगत करा रहा है। खैर देखना है कि चिटफंड कंपनियों का दंश झेल चुके इस राज्य को फिर चिटफंड के नये अवतार से राहत कैसे मिलती है।

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