कहा, इन लोगों की मृत्यु कुपोषण व बिना चिकित्सा के कारण हुई
कोलकाता। बिना चिकित्सा के सबर आदिवासी समुदाय के आठ लोगों की मौत का मामला ऱाज्य में गरमाता जा रहा है। घटना झाड़ग्राम जिले के लालगढ़ का बताया जा रहा है जहां उक्त लोगों की मौत कुपोषण और बिना चिकित्सा के कारण होने के आरोप है। आज सीपीआई (एमएल) लिबरेशन ने बयान जारी कर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की चुप्पी पर सवाल उठाया है। संगठन के महासचिव पार्थ घोष ने पूछा है कि लालगढ़ में ममता बनर्जी आदिवासी समुदाय के विकास की चर्चा करती हैं लेकिन 15 दिनों तक लोग भूखे-प्यासे तड़पते रहे। उन्हें चिकित्सा नहीं मिली और अंत में मरना पड़ा। क्या यही आदिवासियों का विकास किया जा रहा है ? पार्थ ने बताया कि यह लोग मरने से पहले इलाके के पंचायत भवन में भी गए थे और इलाज कराने की गुहार लगाई थी। लेकिन ना तो जिला प्रशासन और ना ही पंचायत प्रतिनिधियों ने इनकी समस्याओं को सुना। यहां तक की मौत हो जाने के बाद भी राज्य प्रशासन को इसकी जानकारी तक नहीं थी। इलाके के विधायक के पास इन लोगों का कोई आंकड़ा ही नहीं था। आखिर इसकी जिम्मेदारी किसकी है? इन लोगों की मौत के लिए पूरी तरह से राज्य की मुख्यमंत्री जिम्मेदार हैं और उन्हें इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी। पार्थो घोष ने बताया कि लालगढ़ पंचायत में 100 दिनों के रोजगार के तहत 945 लोगों को पंजीकृत किया गया है। इसमें केवल 98 लोग आदिवासी परिवार के हैं। यह क्षेत्र आदिवासी बहुल है, लेकिन यहां रोजगार योजना के तहत सबसे कम आदिवासियों को काम दिया गया है। उन्हें भी महीने में 20 दिन से अधिक रोजगार नहीं मिला। यह खा रहे हैं, जी रहे हैं या मर रहे हैं, इसकी खोज खबर कोई नहीं रखता। उन्होंने मुख्यमंत्री के विज्ञापनों पर सवाल उठाते हुए कहा कि राज्य सरकार ऐसा विज्ञापन लगाती रही है कि, जंगलमहल हंस रहा है। लेकिन अब जाकर यहां की वास्तविक परिस्थिति सामने आई है। लोग भूख और इलाज के अभाव में मर रहे हैं। वर्तमान युग में पश्चिम बंगाल की यह दशा ममता बनर्जी की दुर्नीति का ही परिणाम है। राज्य की जनता यह जानना चाहती है कि आखिर इन आदिवासियों की मौत के लिए कौन जिम्मेदार है। मुख्यमंत्री को इस पर अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए और अगर इसके पीछे राज्य प्रशासन या जनप्रतिनिधि की भूमिका लापरवाह पूर्ण है, तो उन्हें चिन्हित कर दंडित करने की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए। एक और राज्य के आदिवासी भूख और इलाज के बिना मरे और दूसरी और मुख्यमंत्री राजनीतिक जनसभाएं करें यह शोभा नहीं देता। पश्चिम बंगाल के झाड़ग्राम जिले में कुपोषण और इलाज के अभाव में पिछले 15 दिनों में सबर जाति के आठ आदिवासियों के मौत की खबर सामने आई है। इस घटना ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के जंगल महल में सुख-समद्धि और खुशहाली के दावे की पोल खोल दी है। लालगढ़ ब्लॉक के पूर्णपानी ग्राम संसद क्षेत्र स्थित जंगलखास गांव में लगभग सबर जाति के 40 आदिवासी परिवार निवास करते हैं। प्राय: सभी परिवार के लोग कुपोषण के शिकार हैं। कई लोग टीबी की चपेट में हैं। पिछले एक पखवाड़े में मंगल सबर (28), पल्टू सबर (33), किशन सबर (34), लाल्टू सबर (38), लेबू सबर (46), सुधीर सबर (63), सबित्री सबर (51) की मौत हुई है। इसका खुलासा होने के बाद जब जिला प्रशासन से इस बारे में सवाल पूछा गया तो ना तो जिला शासक और ना ही पुलिस के आला अधिकारियों को इस बारे में कोई जानकारी थी। माकपा के जमाने में भी इस क्षेत्र में कुपोषण से लोगों की मौत हुई थी। इस पर ममता ने खूब हंगामा मचाया था लेकिन अब मुख्यमंत्री की चुप्पी भी निश्चित तौर पर सवालों के घेरे में है। गौर करने वाली बात यह है कि जंगल महल का किला का एक दौर में माओवाद प्रभावित क्षेत्र रहा है। वर्ष साल 2011 में शीर्ष माओवादी नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी के मुठभेड़ में ढेर होने के बाद से इलाका शांत हुआ है। इसका श्रेय लेती हुई मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कई सार्वजनिक मंच से घोषणा की है कि पश्चिम बंगाल सरकार की नीतियों की वजह से जंगल महल का इलाका आज खुशहाली है। लेकिन 15 दिनों के अंदर आठ लोगों की मौत कुपोषण और इलाज के अभाव होने से राज्य सरकार के दावे की कलाई खुल गई है।
|
|
|