इन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कोर्ट जा सकती है सीबीआई

कोलकाता। लगता है कि महानगर के पुलिस कमिश्नर समेत उन चार आईपीएस पुलिस अधिकारियों पर कानून की गाज गिर सकती है जिन्होंने सम्मन मिलने के बाद भी सीबीआई कार्यालय में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं की। मिली जानकारी के अनुसार सीबीआई सीपी समेत चार आईपीएस के खिलाफ वारंट के लिए अदालत जाने की तैयारी में है। शारदा मामले में साक्ष्यों को मिटाने के आरोप में फंसे कोलकाता पुलिस आयुक्त राजीव कुमार समेत चार अन्य आईपीएस अधिकारियों को बार-बार समन भेजने के बाद भी सीबीआई दफ्तर में नहीं आने और पूछताछ में सहयोग नहीं करने को लेकर जांच एजेंसी अब अदालत का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रही है। आज मामले की जांच कर रहे अधिकारियों में से एक ने बताया कि 2013 में शारदा प्रमुख सुदीप्त सेन और उनकी सहयोगी देवजानी को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने हिरासत में लिया था व मामले की जांच के लिए गठित राज्य पुलिस की स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम (एसआईटी) के हवाले कर दिया था। उसके प्रमुख थे वर्तमान पुलिस आयुक्त राजीव कुमार। इसके अलावा एसआईटी में आईपीएस विनीत गोयल, पल्लव कांति सेन, अर्णव घोष, तमाल बोस और कई अन्य अधिकारी शामिल थे। इनमें से कुछ सीआईडी में तैनात थे तो कुछ विधाननगर पुलिस कमिश्नरेट के उच्चाधिकारी थे। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने जब सारदा प्रमुख और देवजानी को‌ एसआईटी के हवाले किया था तब उनके पास से बरामद की गई एक लाल डायरी और उनके फोन का रिकॉर्ड भी सौंपा था। इसके अलावा उनके फोन रिकॉर्ड में उन लोगों का नंबर था जो लगातार सुदीप्त‌ सेन से संपर्क में थे। उस में सत्तारूढ़ पार्टी के कई नेता थे। 2014 में कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्देश के बाद जब सीबीआई ने मामले की जांच शुरू की तो कोर्ट ने निर्देश दिया था कि मामले से संबंधित जितने भी साक्ष्य मिले हैं वह सारे सीबीआई को सौंपने होंगे लेकिन राज्य पुलिस ने लाल डायरी व फोन रिकॉर्ड मुहैया नहीं कराया। इतना ही नहीं बल्कि मिडलैंड पार्क स्थित सारदा समूह के फॉर्म हाउस से 22 ट्रक दस्तावेज बरामद किए गए थे। उसमें से एक कागज का टुकड़ा भी पुलिस ने सीबीआई के हवाले नहीं किया। इस दस्तावेज में बाजार से उठाए गए रुपये, सारदा समूह द्वारा खर्च किए गए रुपये का हिसाब-किताब, वर्तमान सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं के विदेश दौरे आदि का विस्तृत विवरण दर्ज था। जुलाई महीने में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य पुलिस को स्पष्ट निर्देश दिया था कि जांच में सहयोग करें लेकिन दो महीने बाद भी पुलिस की ओर से किसी तरह का सहयोग नहीं किया गया है। इसके बाद सीबीआई एक बार फिर इसे लेकर हाईकोर्ट में याचिका लगाने की तैयारी कर रही है ताकि इन अधिकारियों के खिलाफ या तो वारंट जारी हो या कोर्ट इन्हें सख्त संदेश दे कि ये पूछताछ के लिए हाजिर हों। बहरहाल देखना है कि आगे कानून के रक्षक कहे जाने वाले इन पुलिस अधिकारियों की रणनीति क्या होती है।

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