राजनीतिक चेहरों वाली राखियों के क्रेज हुए कम
बाहुबली, मोटू-पतलु, बाल गणेशा की जबदस्त मांग
महानगर में केजरी हुए घाटे का सौदा

जगदीश यादव
कोलकाता। रक्षाबंधन का त्योहार करीब है और ऐसे में महानगर कोलकाता के बड़ाबाजार से लेकर पोर्ट अंचल के तमाम बाजार राखियों से सजने शुरू हो गए हैं। बाजार में तरह-तरह की राखियां देखने को मिल रहीं हैं। बाजार में हर बार की तरह जहां कार्टून राखी बच्चों की पहली पसंद है। लेकिन महानगर कोलकाता की बात करे तो यहां स्नेह के धागे के आगे सियासत बौनी नजर आ रही है। जी हां , भले ही सियासत करने वालों को यह सच कड़वा लगे लेकिन राखी के बाजार और उपभोक्ता के मूड तो यही दर्शा रहें है। आमतौर पर एक देढ़ दशक से भारतीय परम्परा या फिर कहें कि त्यौहारों पर सियासत का रंग चढ़ा नजर आता रहा है लेकिन इस बार ऐसा नहीं दिख रहा है। बाजार में हर बार की तरह जहां कार्टून राखी बच्चों की पहली पसंद है। ऐसे में बाहुबली से लेकर गणेशा और बेन-10 की राखी बच्चो की पहली पसंद बने हुए है और उक्त स्तर के राखी जम के खरीदे जा रहे है। कई राखी बिक्रेता सहित संतोष साव ने बताया कि आमतौर पर कार्टून राखी की ही व्यापक मांग है और लोग इसे ही खरीद रहे है। इसके मुकाबले मोदी और तृणमूल लोगो वाली राखियां नहीं बिक रही है जबकि केजरीवाल राखी की तो महानगर में हवा निकल रही है। केजरी राखी स्टाल पर पड़े है और धड़ा धड़ अन्य राखियां बिक रही है। राखी बिक्रेता संतोष साव ने बताया कि मोदी व तृणमूल लोगों के साथ ही केजरी राखी इस बार फिर देखी जा रही है। इसी बीच यहां पर मल्टीपरपस राखी नई राखियों में से एक है। यह राखी महिलाओं को बांधने वाली राखी है जिसे पहले लुम्बे की तरह इस्तेमाल किया जाएगा और फिर इसे पिन, डेकोरेटिव आइटम्स, फोटो फ्रेम और हैंगिंग डेकोरेटिव आइटम की तरह इस्तेमाल किया जाएगा। सबसे ज्यादा बाहुबली, मोटू-पतलु, बाल गणेशा, बेन-10, छोटा भीम, पोकोमैन ही बिक रहे है। एक राखी बिक्रेता ने नाम की गोपनियता पर कहा कि, केजरी राखी घाटे का सौदा साबित हो रहा है तो वही मोदी व तृणमूल लोगों की मांग भी औसत से इस बार कम है। रही बात दुकानदारों की तो सियासत के रंग में रंगे राखियों को ज्यादतर दुकानदार रखने से परहेज कर रहे है कि क्यों कि विवाद का डर बना रहता है। बहरहाल बाहुबली 10 , मोटू-पतलु 15, बाल गणेशा 10, बेन-10 राखी 10, छोटा भीम 15, पोकोमैन 15 रुपये में प्रति राखी धड़ल्ले से बिक रहे है। वैसे जब राजनीतिक चेहरों वाली राखियों के क्रेज घटने के बारे में जब रखी खरीदने के लिये अपने बच्चों के साथ आयी महिलाओं से बात की गयी तो उन्होंने आमतौर पर एक ही तरह का जवाब देते हुए कहा कि कोई भी हो अपनी परम्परा में सियासत हो या अन्य किन्ही कारण का दखल या अतिक्रमण देखना नहीं चाहेगा। पर्व, या परम्परा अपने असल स्वारुप में ही आनन्द देते हैं। विशेष कर परम्परा पर तो सियासत का अतिक्रमण होना ही नही चाहिए वरना अप संस्कृति का खतरा बना ही रहता है।

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