राज्य ने केंद्र सरकार को भी भेजा प्रस्ताव

कोलकाता। राज्य विधानसभा ने राज्य का नाम बदलने का प्रस्ताव पारित कर दिया है। राज्य का नाम बांग्ला रखने को लेकर यह प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित किया गया है। हालांकि इस नाम को तभी स्वीकृति मिलेगी जब केंद्रीय गृहमंत्री इसे मंजूरी देंगे। यह फैसला ऐसे समय पर लिया गया है जब केंद्र और राज्य के बीच इस प्रस्ताव को लेकर खींचतान जारी है। है। हालांकि, यह नाम तभी बदल पाएगा जब इस प्रस्ताव पर गृह मंत्रालय अपनी स्वीकृति दे देता है।इस प्रस्ताव पर केन्द्र और राज्य के बीच हां और ना के कई महीनों के बाद एक बार फिर से यह कदम उठाया गया है। इससे पहले, केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार के उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था जिसमें पश्चिम बंगाल को इंग्लिश में बंगाल और बांग्ला में बांग्ला करने की सिफारिश की गई थी। इससे पहले, पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा था कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अगुवाई में राज्य सरकार ने उस वक्त यह फैसला किया था कि तीनों भाषा-बांग्ला, हिन्दी और इंग्लिश में इसका नाम बदलने के लिए प्रस्ताव भेजा जाएगा। इससे पहले, तृणमूल कांग्रेस जब राज्य की सत्ता में आई थी उस समय राज्य का नाम बदलकर पश्चिम बंगो करने का फैसला किया था और उसके बाद फिर उसे बंगाल करने का फैसला किया था। हालांकि, केन्द्र से उस पर स्वीकृति नहीं मिल पाई थी। पश्चिम बंगाल का नाम बदलने का शुरुआती कारण ये है कि जब भी सभी राज्य सरकारों की बैठक होती है तो अल्फाबेटिकल ऑर्डर में पश्चिम बंगाल का नाम सबसे आखिर में आता है।केंद्र सरकार ने इससे पहले राज्य सरकार के नाम बदलने वाले प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। राज्य सरकार अंग्रेजी में राज्य का नाम बंगाल और हिंदी में बांग्ला करना चाहती है। राज्य के शिक्षा मंत्री पार्थ चैटर्जी ने पहले कहा था कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने हिंदी, अंग्रेजी और बंगाली में राज्य का नाम बदलने का प्रस्ताव दोबारा भेजा है। संयोग से राज्य सरकार ने राज्य का नाम बदलकर बंगाल करने का निर्णय ले लिया है। साल 2011 में तृणमूल को केंद्र से इस प्रस्ताव पर मंजूरी नहीं मिली थी। राज्य का नाम बदलने का पहला कारण यह है कि जब भी सभी राज्यों की बैठक होती है तो वर्णक्रमानुसार सूची में पश्चिम बंगाल का नाम नीचे होती है। बहरहाल बता दें कि कलकत्ता को बदलकर कोलकाता कर दिया गया। उदहरण के तौर पर हरिसन रोड़ महात्मा गांधी रोड बन गया लेकिन बंगाल की तकदीर नहीं बदल रही है।  आजादी के बाद से ही शहर के साथ-साथ राज्य का नाम भी बदलने की मांग की जाती रही है।  बदलाव के रथ पर सवार लोग पश्चिम बंगाल का नाम बदलकर ‘बांग्ला’  या बंग एक लम्बे अंतराल से करना चाह रहें थे। बदलाव की डफली बजा रहें लोगों का अपना तर्क है कि जब पूर्वी बंगाल व पूर्व पाकिस्तान स्वतंत्र बंग्लादेश हो गया तब पश्चिम बंगाल का नाम क्यों नहीं बदला जा सकता है।  लेकिन सवाल तो यह भी है कि क्या नाम बदलकर क्या इतिहास और राज्य के भूगोल को भी बदला जा सकता है?
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