पुलिस के लगाए 24 में आठ कैमरे ही काम कर रहे थें
मामले पर पुलिस महानिदेशक की मौनता उठा सवाल
जांच एजेंसी सीआईडी मुख्यालय पहुंचे केंद्रीय सुरक्षा सचिव

कोलकाता। बिते दिनों पश्चिम मेदिनीपुर तब देश भर की मीडिया की खबरों में आ गया था जब यहां के कॉलेजिएट ग्राउंड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा के दौरान पंडाल का एक हिस्सा गिरने से घायल हुए 91 लोग घायल हुए थे। लेकिन उक्त मामले पर जहां सभा आयोजन में जहां लापरवाही के मुद्दा भी सामने आ रहा है तो वहीं । मामले की जांच में राज्य सरकार की उदासीनता पर सवाल भी उठ रहे है। यहां तक कि मामले में साजिश की गंध भी मिल रही है। देश भर में चर्चित हो चुके इस घटना की जांच राज्य पुलिस के हाथ से सीआईडी ने ले ली। वहीं इसके केंद्रीय एसपीजी भी मामले की जांच कर रही है। आज सामने आई रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि राज्य पुलिस ने इस मामले में लोगों की सुरक्षा के प्रति किसी भी तरह की कोई सक्रियता नहीं दिखाई । यहां तक कि नियमानुसार प्रधानमंत्री की जनसभा के लिए की जाने वाली तैयारियों के संबंध में राज्य पुलिस को कार्यक्रम आयोजकों के साथ कई दफे बैठकें कर सुरक्षा व्यवस्था की तहकीकात करनी चाहिए थी लेकिन भारी संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ने की संभावना देखते हुए भी राज्य पुलिस के अधिकारियों ने एक बार भी सभा आयोजकों के साथ बैठक नहीं की। दरअसल घटना की जांच के लिए केंद्रीय सुरक्षा सचिव एसके सिन्हा और संयुक्त सचिव आरके भटनागर सीआईडी मुख्यालय में पहुंचकर राज्य पुलिस के पुलिस महा निदेशक वीरेंद्र के साथ विशेष बैठक की । इन्होंने सवाल किया कि नियमानुसार किसी भी तरह की जनसभा की सुरक्षा राज्य पुलिस की होती है। कार्यक्रम आयोजकों के साथ पुलिस ने किसी भी तरह की कोई भी सुरक्षा संबंधी बैठक क्यों नहीं की? इस पर राज्य पुलिस के पुलिस महा निदेशक भी कोई सकरात्मक व उचित कारण नहीं बता सके तो मामले पर जवाब भी नहीं दे सके। हलाकि वीरेंद्र ने कहा है कि इससे संबंधित रिपोर्ट राज्य सरकार केंद्र सरकार को भेजेगी। इतना ही नहीं अब इस बात का भी खुलासा हुआ है कि प्रधानमंत्री की सभा की निगरानी रखने के लिए पुलिस की ओर से एक संस्था को ठेका दिया गया था जिसने 24 सीसीटीवी कैमरे लगाए थे। घटना के बाद वारदात को समझने के लिए एसपीजी के जवानों ने जब पुलिस से इससे संबंधित फुटेज मांगा है तो पता चला है कि इसमें से केवल 8 कैमरे ही काम कर रहे थे बाकी के 16 कैमरे खराब हो चुके थे। इस बात का भी खुलासा हुआ है कि पूरी जनसभा के दौरान एसपी और डीएम मौजूद नहीं थे। यहां तक कि घटना होने के बाद भी पुलिस के जवानों ने लोगों को अस्पताल पहुंचाने में लापरवाही की। सबसे गंभीर आरोप तो यह है कि घटना के बाद पर्याप्त प्रशासनिक मदद के लिए एसपीजी के अधिकारियों ने जब इस मामले में पुलिस अधीक्षक आलोक राजोरिया को फोन कर संपर्क करना चाहा तो वह न तो फोन पर उपलब्ध थें और न ही प्रधानमंत्री के बंगाल में रहने तक उन्होंने एसपीजी अधिकारियों से बात की। प्रधानमंत्री के चले जाने के बाद एसपी और डीएम अस्पताल पहुंचे थे। प्रदेश भाजपा के सचिव शायंतन बसु ने इस बारे में साफ कर दिया है कि राज्य प्रशासन ने पूरी घटना की साजिश रची। प्रधानमंत्री की जनसभा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के संवैधानिक दायित्व से परे हटकर कहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कोपभाजन से बचने के लिए पुलिस अधीक्षक आलोक राजोरिया और डीएम घटनास्थल से दूर रहे। लोगों को मरने के लिए छोड़ कर केवल राजनीतिक आकाओं को खुश करने में पुलिस जुटी थी। इसके खिलाफ कोलकाता हाईकोर्ट में मामला होगा।

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