प्रदेश कांग्रेस की उलझन कही नासूर न बन जाये
ममता की नियत पर एक धड़े को संदेह
एक खेमा तृणमूल तो दूसरा वामो के साथ

कोलकाता। 2019 में होने वाले चुनाव का समय जैसे जैसे नजदीक आता जा रहा है, वैसे वैसे चुनावी सरगर्मी बढ़ती जा रही है। 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों की तैयारी में जुटे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इसी सप्ताह राज्य का दौरा करने वाले हैं। राहुल के दौरे से महज कुछ दिन पहले ही राज्य से पार्टी के एक बुरी खबर आई है। राहुल गांधी के दौरे से पहले कांग्रेस नेता दो धड़ों में बंट गए हैं। खास बात यह है कि दोनों में से कोई भी धड़ा अब कांग्रेस का साथ नहीं देना चाहता है। पार्टी का एक धड़ा तृणमूल के साथ गठबंधन को इच्छुक है तो दूसरा माकपा का हाथ थामना चाहता है। कांग्रेस में एक धड़े के लोगों ने गोपनियता की शर्त पर कहा कि, राज्य में ममता बनर्जी कांग्रेस के खतम करने के लिये तमाम हथकण्डे अपना रही है तो दिल्ली में कांग्रेस से इस तरह से चिपक रही है कि उनसे बड़ा कांग्रेस का कोई शुभ चिंतक ही नही है। आखिर दीदी के इस तरह के कार्य को पार्टी क्यों समर्थन करेगी। ऐसे में साफ नजर आ रहा है कि वर्ष 2019 के होने वाले लोकसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ उनकी लड़ाई में गठबंधन सहयोगी के चयन को लेकर प्रदेश इकाई में मतभेद जारी है। प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम की गोपनियता की शर्त पर बताया कि संगठनात्मक मुद्दों पर चर्चा के लिये आधिकारिक रूप से छह जुलाई को बैठक बुलायी गई है। लेकिन तृणमूल कांग्रेस द्वारा कांग्रेस विधायकों को अपने पाले में करना और तृणमूल या माकपा के साथ गठबंधन का मुद्दा भी इस दौरान उठने की संभावना है। प्रदेश कांग्रेस कमेटी (डब्ल्यूबीपीसीसी) की ओर से प्रदेश महासचिव ओम प्रकाश मिश्रा द्वारा तैयार और केंद्रीय नेतृत्व को भेजी गई रिपोर्ट में संसदीय चुनाव के लिए माकपा से हाथ मिलाने की सिफारिश की गई है। हालांकि पार्टी सांसदों एवं विधायकों के एक धड़े का मानना है कि वर्ष 2019 में अधिक से अधिक सीटें जीतने के लिए तृणमूल के साथ हाथ मिलाना बेहतर तरीका होगा। राज्य में कांग्रेस विधायक और पार्टी के राष्ट्रीय सचिव मोइनुल हक ने 2 जुलाई को एक सार्वजनिक रैली में अपने समर्थकों की अनुमति लेने के बाद तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में शामिल होने का फैसला किया है। बता दें कि मोइनुल हक झारखंड के लिए पार्टी पर्यवेक्षक हैं। इससे पूर्व वे जम्मू-कश्मीर के भी पर्यवेक्षक रहे चुके हैं। एक के बाद एक पश्चिम बंगाल से कांग्रेस के लिए बुरी खबर आना पार्टी की स्थिति के लिए नुकसान दायक साबित हो सकता है। बहरहाल यह बता देना उचित होगा कि भाजपा ने अपना निशाना पश्चिम बंगाल को बनाया है। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि उन्हें कम से कम राज्य में 20 सीट जीतनी हैं। ऐसे में कांग्रेस भी पीछे क्यों रहे. कांग्रेस का एक धड़ा यहां चाहता है कि वह ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल के साथ मिलकर चुनाव लड़े। ये रिपोर्ट तब सामने आ रही है, जब बंगाल में ही कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी समेत दूसरे नेता चाहते हैं कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में लेफ्ट के साथ गठबंधन करे। दरअसल पिछले हर चुनावों में बंगाल में भाजपा का वोट बैंक बढ़ता जा रहा है। ऐसे में कांग्रेस चाहती है कि वह किसी एक पार्टी से गठबंधन कर भाजपा के असर को कम करे। लेकिन इसके चक्कर में कांग्रेस के अंदर से ही दो सुर उभरने लगे हैं। टीएमसी के साथ गठबंधन के पक्षधर बताते हैं कि दो साल पहले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का लेफ्ट के साथ हुआ गठबंधन ज्यादा कामयाब नहीं हुआ था। इसलिए कांग्रेस के कई विधायक और सांसद अब ममता बनर्जी के साथ गठबंधन के पक्ष में हैं।

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