पीडि़ता ने मानवाधिकार आयोग को लिखा खत 

कोलकाता। कहते हैं कि जमाना काफी पहले ही चांद के दर जा पहुंचा है लेकिन दकियानुसी सोंच के सांप का फन उठाना जारी है। पिछले साल अपना सेक्स परिवर्तन कराने के बाद हिरण्मय दे से सुचित्रा दे बनने वाली ट्रांसजेंडर टीचर की मुश्किलें अभी कम नहीं हुई हैं। भले ही उनके पास 10 साल तक पढ़ाने का अनुभव है। अंग्रेजी और जिऑग्रफी में डबल मास्टर्स हैं, लेकिन यह सब काफी नहीं है, क्योंकि महानगर कोलकाता के कई स्कूलों में जब वह इंटरव्यू के लिए पहुंचीं तो उनसे सेक्शुअलिटी और ब्रेस्ट के बारे में सवाल पूछे गए।इंटरव्यू के दौरान बुरे अनुभवों से गुजरने वाली सुचित्रा दे का कहना है, ‘एक पुरुष प्रिंसिपल ने मुझसे पूछा कि क्या सेक्स के बाद मैं गर्भ धारण कर सकती हूं। वहीं एक अन्य प्रतिष्ठित स्कूल की महिला प्रिंसिपल ने धमकी भरे अंदाज में कहा कि अगर वहां मुझे नौकरी करनी है तो अपना परिचय बदलना पड़ेगा।’ ‘सुचित्रा ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि महानगर  के प्रतिष्ठित स्कूलों के प्रिंसिपलों ने साक्षात्कार के दौरान मेरे विषय के बजाए सेक्स चेंज से जुड़े धक्का पहुंचाने वाले और बेतुके सवाल पूछे। अपने स्कूल में भी ऐसी ही पीड़ा झेलने वाली सुचित्रा का कहना है, ‘मैंने पाया कि ट्रांसजेंडर के बारे में लोगों का पूर्वाग्रह अभी बदला नहीं है। शिक्षकों को भविष्य का निर्माता माना जाता है। यदि शिक्षित लोगों का यह नजरिया है, तो हम बाकी लोगों से क्या अपेक्षा रख सकते हैं?’ ट्रांसजेंडर का उत्पीड़न और बदसलूकी के मामले देश के अलग-अलग हिस्सों में सुनने को मिलते हैं। कई बार उनके परिजन उन्हें घर से निकाल देते हैं, तो कई जगह उन्हें नौकरी देने से इनकार कर दिया जाता है। उन्हें अक्सर सेक्स वर्कर, भीख मांगने या शादियों में डांस करने के लिए जबरन झोंक दिया जाता है। सुचित्रा दे पश्चिम बंगाल में लेजबियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) फोरम की सक्रिय सदस्य हैं। उन्होंने समाज से अपने जैसे दूसरे लैंगिक अल्पसंख्यकों को खुले दिल से स्वीकार करने की अपील की है। खुद को देश के सबसे शिक्षित ट्रांसजेंडरों में से एक बताने वाली सुचित्रा ने राज्य मानवाधिकार आयोग को खत लिखते हुए इस मामले में दखल देने की मांग की है। सुचित्रा कोलकाता के ठाकुरपुर इलाके में अपनी मां के साथ रहती हैं। उनका कहना है, ‘मेरी मां एक बुजुर्ग महिला हैं। इसलिए उनका और खुद का गुजारा करने के लिए मुझे नौकरी की जरूरत है। अगर समाज का हर तबका हमें खारिज कर देगा, तो हम कैसे अपनी जिंदगी गुजारेंगे?’ 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में ट्रांसजेंडर को नई पहचान देते हुए थर्ड जेंडर कैटिगरी में रखा था। लेकिन इस फैसले के बावजूद समाज में ट्रांसजेंडरों से भेदभाव के मामले लगातार देखने को मिल रहे हैं।
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