प्राचीन संगीत जगत के लोगों में खुशी

जगदीश यादव

कोलकाता। एक बार फिर से बंगाल की सत्ता में ममता बनर्जी का ही राज चलेगा बस शपथ ग्रहण भर की देरी है। देश दुनिया भर में दीदी के तौर पर प्रसिद्ध ममता बनर्जी को कला-संस्कृति प्रेमी माना जाता है और उनके कार्यों से उक्त बात समाने भी आई है। वह खुद एक चित्रकार होने के साथ ही लेखक भी हैं। साथ ही संगीत से भी उन्हें प्रेम है। ऐसे में अगर बात लोकगीत की करें तो क्या कहना। शायद यही वजह है कि राज्य के बाउल गीत गाने वालों में दीदी के इस ऐतिहासिक जीत से एक बड़ी उम्मीद जगी है कि अब नका जरुर भला होगा। ऐसा ट्रेनों में और कोलकाता के रास्ता घाट में बाउल संगीत के जरीये पेट की भूख माने वालों का विश्वास है। बाउल गीत गाने वाले लक्खीकांत बाउल ने कहा कि लगता है कि उनके अच्छे दिन आने वाले हैं। उन्होंने कहा कि वह लोग जानते थें कि दीदी की ही सरकार बनेगी । ममता दीदी ईमानदार हैं । वह कला संस्कृति से अगाध प्रेम करती हैं। आशा है कि दीदी की नजरें बाउल पर मेहरबान होगी ही।

बाउल के जानकार व गाने वालों का मानना है कि पश्चिम बंगाल बाउल जनजाति का  इतिहास 450 से 500 साल पुराना है। हालांकि कुछ लोग इसे और भी ज्यादा पुराना मानते हैं। बंगला संस्कृति ही लगभग 800 साल पुरानी है। बाउल गायक हरफन मौला माने जाते हैं।  उनका जीवन बाउल के प्रति समर्पित होता है। दो दशक पहले तक वह लोग एक गांव से दूसरे गांव घूमते रहते थें। लेकिन आज इनके संगीत पर भी मीडिया की मार पड़ी है और नये लोग इस पेशे में नहीं आना चाहते हैं। इनके एक हाथ में इकतारा होता है और कमर पर एक अन्य वाद्य यंत्र खोल बंधा होता है। यह खोल बंगाली संगीत में बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखता है।  बताया जाता है कि 1857 में हुए पहले स्वतंत्रता संग्राम में बाउल जनजाति ने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उस दौरान इस जनजाति ने अपने स्वभाव के अनुरूप गांव-गांव घूमकर क्रांति के बारे में बंगाल के लोगों को जागरूक किया था। उस दौरान समाचार पत्र जैसे संचार माध्यम गांवों में नहीं पहुंचते थे, इसलिए इस जनजाति का योगदान अहम माना जाता है। वे बाउल गायन के जरिये लोगों को जागरूक करते थे। बहरहाल देखना तो यह है की दीदी राज्य की कला-संस्कृति के घोत्तक बाउल संगीत व इसके गायकों के लिये क्या करती हैं?

 

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