पांच वर्ष में 29.3 से 41 हुआ वोंट प्रतिशत

कोलकाता। भले ही इस राज्य में कुछ वामपंथी मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने कि कुछ भी कर जाएं लेकिन इस वर्ग के मतदात इस चुनाव में ममता बनर्जी पर काबिल-ए-तारिफ के अंदाज में मेहरबान रहें। वही पश्चिम बंगाल में वामपंथियों को इस वर्ग ने भी सबक सिकाने में कोई कसर नहीं छोड़ा। ऐसा हम नहीं बरन आंकड़े कह रहे हैं। इस राज्य में 65 सीटें ऐसी हैं, जहां पर मुस्लिम मतदाताओं का प्रभाव है। अब बता दें कि 2011 विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को मुस्लिम बहुल इलाकों में 30सीटों पर विजय प्राप्‍त हुई थी और इनसे टीएमसी को29.3 प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि 2016 विधानसभा चुनाव में टीएमसी पर मुस्लिम मतदाताओं का विश्‍वास और बढ़ गया।जिसका प्रमाण है कि इस बार तृणमूल को मुस्लिम बहुल इलाकों में 38 सीटें पर जीत हासिल हुई। इन विधानसभा क्षेत्रों में टीएमसी 41 प्रतिशत मुस्लिम वोट हासिल करने में सफल रही। कांग्रेस की बात करें तो 2011विधानसभा चुनाव में उसे मुस्लिम बहुल इलाकों में 14.4प्रतिशत वोटों के साथ 16 सीटें मिली थीं। वहीं 2016 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मुस्लिम बहुल इलाकों में 19 प्रतिशत वोटों के साथ 18 सीटों पर जीत दर्ज की है।

अगर वामपंथी दलों की बात करें तो 2011 में उन्‍हें मुस्लिम बहुल इलाकों में 41.7 प्रतिशत वोटों के साथ 18सीटों पर विजय हासिल हुई थी। वहीं पांच साल बाद 2016के विधानसभा चुनाव में वामपंथी दलों का प्रदर्शन मुस्लिम इलाकों में बेहद खराब रहा। इस बार उन्‍हें सिर्फ 24प्रतिशत वोट प्राप्‍त हुए और कुल 8 सीटों पर ही जीत मिल सकी।

भारतीय जनता पार्टी को 2011 विधानसभा चुनाव में एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी। पार्टी मुस्लिम बहुल इलाकों में सिर्फ 4.6 प्रतिशत वोट ही प्राप्‍त कर सकी थी।-2016 विधानसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन सुधरा है। पार्टी को इस बार मुस्लिम बहुल इलाकों में एक सीट पर जीत हासिल हुई है और उसका वोट प्रतिशत बढ़कर 9.6प्रतिशत हो गया है। बहरहाल देखना है कि वाममोर्चा अब आगे इस वर्ग से खो चुके विश्वास को हासिल करने के लिये क्या पैंतरे बदलती है।

 

 

 

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