पुलिस प्रशासन के बीच टकराव की आशंका

कोलकाता।आज श्रीराम नवमी को लेकर पूरे राज्य भर में जहां भगवा खेमा शस्त्र जुलूस निकाल सकता है वहीं इन शस्त्र जुलूसों को रोकने के लिये राज्य सरकार ने कमर कस लिया है। ऐसे में अगर राज्य के तमाम जगहों पर भगवा शिविर में शामिल लोगों व पुलिस प्रशासन के बीच टकराव हो तो हैरत की बात नहीं होगी। पिछले वर्ष रामनवमी पर भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल समेत कई और हिंदू संगठनों की ओर से शस्त्र जुलूस निकाला गया था, जिसे लेकर कई दिनों तक बंगाल से लेकर देश तक की राजनीति गर्म रही थी। इस वर्ष फिर से रामनवमी को लेकर सियासत शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को पूर्व बर्धमान में प्रशासनिक बैठक के दौरान पुलिस प्रशासन से साफ कहा कि किसी प्रकार का शस्त्र जुलूस न निकले, यह सुनिश्चित किया जाए। वहीं इससे पहले कोलकाता पुलिस ने प्रदेश भाजपा को पत्र लिखकर शस्त्र जुलूस नहीं निकालने की अपील की है। कोलकाता में वैसे भी पुलिस ने शस्त्र जुलूस पर आगामी एक वर्ष तक प्रतिबंध लगा रखा है। यह तो प्रशासनिक स्तर की बात है। अब तृणमूल ने भी घोषणा की है कि रामनवमी पर वे लोग भी जुलूस निकालेंगे यानी अब तक जिस ममता बनर्जी पर मुसलमानों के तुष्टीकरण का आरोप लग रहा था, अब वे उससे बाहर निकलने की कोशिश करने के साथ-साथ हिंदू वोट बैंक पर भी पकड़ बरकरार रखने की कोशिश कर रही हैंं। यूं कहा जाए कि अब सत्ता पक्ष व विपक्ष दोनों ने ही रामनवमी पर सियासत शुरू कर दी है। इसकी वजह भी है कि जिस तरह से भाजपा ने संघ व अन्य हिंदू संगठनों के माध्यम से राज्य में तेजी से प्रभाव बढ़ाया है, उससे तृणमूल की चिंता बढ़ी है। त्रिपुरा में 25 वर्षों के वामपंथी शासन का अंत करने के बाद भाजपा नेतृत्व की नजर अब पश्चिम बंगाल पर है। ऐसे में ममता भाजपा को उसी की भाषा में जवाब देने की तैयारी में है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने तो साफ कहा कि शस्त्र पर रोक है तो वे लोग गदा लेकर जुलूस निकालेंगे यानी आगामी 25 मार्च को रामनवमी पर राज्य के लोगों को भाजपा व तृणमूल अपने-अपने तरीके से ताकत दिखाने की तैयारी में हैं, पर क्या किसी पर्व को लेकर सियासत होनी चाहिए? पर्व तो आनंद मनाने का समय है, जिसे सभी को मिल-जुलकर मनाना चाहिए। बहरहाल राज्य में पिछले छह वर्षों से तृणमूल कांग्रेस का एकछत्र राज चल रहा है। पिछले हर चुनाव में तृणमूल को अपार सफलता मिली है। अब 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बंगाल में आगामी कुछ माह में पंचायत चुनाव होना है। ग्रामीण इलाकों का यह चुनाव काफी हद तक कई राजनीतिक दलों का भविष्य बताएगा कि 2019 में बंगाल में उनका क्या होने वाला है इसीलिए खासकर तृणमूल और भाजपा किसी तरह का जोखिम लेने के पक्ष में नहीं है और अपने-अपने स्तर पर पिछले कई माह से तैयारियों में जुटी हैं।
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