jagdish yadav

जगदीश यादव 

कभी पांच वर्ष पहले भी ‘पोरिबर्तन’ के नारे के साथ तृणमूल सुप्रीमों ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा के तीन दशक  से भी ज्यादा समय की बादशाहत छिनकर लाल दुर्ग को ढाह दिया था। गुरुवार को भी ममता बनर्जी ने जीत की कुछ ऐसी ही इबारत लिख दी। उन्होंने साबित कर दिया है कि बंगाल की जनता का बिश्वास उन्होंने खोया नहीं बरन और ज्यादा पाया है। यूं कहें कि उन्होंने एकबार फिर वाममोर्चा को उसकी औकात दिखा दी है। साथ ही लगे हाथ कांग्रेस को भी यह बता दिया की बंगाल में कांग्रेस चाहे जो भी पैंतरे बदले लेकिन आखिरी बात उन्हें ही कहना है। राज्य में तृणमूल की दोबारा जीत यह भी साबित करती है कि ममता दीदी की मां, माटी व मानुष की लाईन गलत नहीं बल्कि दुसरों के लिये मार्ग दर्शन का रास्ता हो सकता है। सच कहें तो अग्नि कन्या कहे जाने वाली ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव की अग्नि परीक्षा सिर्फ पास ही नहीं किया बरन बंगाल में उन्होंने खुद को अव्वल साबित कर दिया है। ममता पर जनता के भरोसे का सच इससे पता चलता है कि सारधा घोटाले, नारदा सह फ्लाईओवर हादसा भी गौण रहा।  तमाम आरोप-प्रत्यारोपों को मददाताओं ने अपने तराजू पर तोल कर दरकिनार कर दिया। सबसे खास बात यह रही कि तृणमूल सुप्रीमों पर से लोगों का बिश्वास उठाने की  विरोधियों की तमाम कोशिशें नाकाम ही रही। वहीं अल्पसंख्यकों के ममता प्रेम में कहीं से भी कोई कमी नहीं आई। वह दीदी के काफी करीब थें और हैं यह तो सबको पता चल ही गया होगा। यह कहना गलत नहीं होगा कि राज्य में इनकी उल्लेखनीय संख्या पर कोई सवाल नहीं उठा सकता है। भले ही ममता बनर्जी पर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप लगाये जाएं लेकिन उन्होंने अल्पसंख्यकों अपने से ठीक बांधे रखा। वैसे कुछ लोगों का मानना है कि भले ही राजनीति  संक्रमण काल से गुजर रही है और उसमें पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव को अगर एक कसौटी की तरह देखें तो यह अतिरंजना नहीं होगी। ममता अबतक जनता की कसौटी पर खरी ही उतरी हैं। दरअसल, जिस तरह पिछले साढ़े तीन दशक से देश में पश्चिम बंगाल वाम राजनीति का गढ़ माना जाता रहा है। इस लाल गढ़ को तृणमूल सुप्रीमों ने अपनी एक खास तस्वीर के बल पर पांच वर्ष पहले ही हिला दिया था। ममता ने अब पांच साल के बाद वाममोर्चा के इस गढ़ को इस कदर कमजोर कर दिया जिसे सम्भालना अब वामपंथियों के लिये दुरुह ही है। विशेष कर वाममोर्चा के बुढ़े और बासी हो चुके चेहरों में पांच वर्ष के बाद इतना दम भी नहीं होगा कि वह लोग ममता के पोरबर्तन के किले का दरवाजा भी अपने बल पर खोल सकें। सब जानते हैं पांच साल पहले सत्ता से बाहर होने के बाद वामदलों ने सत्ता में आने के लिये अपना पूरा जोर लगा दिया था।  यहां तक कि कांग्रेस से समझौता करना भी उनके लिए कोई परेशानी का कारण नहीं बना। अगर बात करें विकास की तो कभी ऐसा भी समय था जब कोलकाता में फुटपाथ रौशनी के लिये तरसते थें। लेकिन अब कदम रखते ही शहर के दोनों तरफ के खंभों से लिपटी नीली और सफेद रंग की  प्रकाश सज्जा व गली मोहल्ले में लगी लाईटें विकास की कहानी बिना किसी से पूछे ही संकेत में कह देती है। यही नहीं शिक्षा का क्षेत्र हो या फिर जंगल महल में माओवाद दमन का रास्ता। हर मामले में मुख्यमंत्री के तौर पर ममता बनर्जी की रणनीति कामयाब रही। उद्योग-धंधे के लिये भी उन्होंने तमाम कोशिशे की और कर रही । हो सकता है कि उक्त मामले पर उन्हें देर से उल्लेखनिय कामयाबी मिले ।  लेकिन कामयाबी उसे ही मिलती है जो काम करता है।

पश्चिम बंगाल में तमाम आरोपों और टकराव के बीच कामयाबी से ममता बनर्जी का एक कार्यकाल पूरा हो चुका है।  वह दुसरे कार्यकाल के पूरी उर्जा के साथ तैयार हैं। सबकों मालूम है कि ममता बनर्जी के पांच साल के सफर का रास्ता फूलों पर चलने के जैसा नहीं था। बल्कि उनके उपर वाम, कांग्रेस व भाजपा ने तीन तरफा हमले किये। कथित घोटालों को लेकर उनकी आलोचना की गई तो उनके खुद के ईमानदारी पर सवाल दागें गये। कभी सारधा तो कभी पेंटिंग तो कभी नारदा के स्टींग को लेकर ।  बहरहाल, चुनावी हिसाब-किताब के लिहाज से देखें तो बिहार,उत्तर प्रदेश सह झारखंड से आए लोगों की कोलकाता में भरमार है। लोग हिंदी भी यहां धड़ल्ले से बात करते हैं तो भोजपुरिया रंग भी यहां जमता है। गंगाघाटों में छठ पूजा के समय ममता दीदी की उपस्थिती से भोजपुरिया समाज को समसामयिक रुप से यह नहीं लगता है कि वह अपने परिवेश से अलग हैं या उनकी अनदेखी की गई है। यहीं कारण है कि दीदी ने हिंदी सह भोजपुरिया समाज को भी अपने से बांधे रखा।  जिस बंगाल में हमेशा चुनावी हिंसा में लोगों की मौत होती रही हो और रिगिंग के लिये जो बंगाल बदनाम रहा हो, उक्त राज्य में इस बार का चुनाव अभूतपूर्व कहा जा सकता है। अभूतपूर्व चुनाव इस अर्थ में क्यों कि जिस स्तर पर सुरक्षा के मध्य मतदान हुए वैसा यहां कभी नहीं हुआ। कहीं से भी यह आरोप लगाना कि सत्तापक्ष ने गड़बड़ी व धांधली से फिर सत्ता पाया है, यह आरोप एकदम से ओछा ही होगा। विरोधी ममता बनर्जी का विरोध अब इसलिये नहीं करें कि वह सिर्फ विरोधी है और उनका काम विरोध करना है। कारण वाम-कांग्रेस को तृणमूल ने आकड़ों में भी इस लायक नहीं छोड़ा है कि यह गठबंधन कुछ कह सके, कुछ कर सके। (लेखक अभय बंग पत्रिका व अभय टीवी डॉट कम के सम्पादक हैं)

 

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