मोबाइल आउटलेट के जरिये मिल सकता है जैविक रंग
कृतिम रंगों से हो सकता है किडनी आंख व त्वचा को नुकसान

जगदीश यादव
कोलकाता। रंगों के उत्सव होली में मात्र कुछ ही दिन बचे हैं। रंगों के त्योहार होली की बहार है। हर तरफ उल्लास का वातावरण है। बाजारें, रंगों, गुलाल एवं खाने- पीने की चीजों से सज गया है। होली में खूब रंग खेले, खूब गुलाल उड़ाएं परन्तु बाजार में सजे केमिकल वाले रंगो से बचे क्योकि यह रंग आपकी होली की बेरंग कर सकते है। इसीलिए कुछ सावधानियां अपनाकर होली मनाएं जिससे होली का रंग बेरंग ना हो और होली की खुशियां बरकरार रहें।ऐसे में आंखों और त्वचा को नुकसान पहुंचाने वाले कृत्रिम रंगों की बनिस्पत फूलों से बने जैविक रंगों के इस्तेमाल से आप होली को और अधिक रंगारंग बना सकते हैं। जैविक रंग तैयार करने में गुलाब, पलाश, अपराजिता और गेंदा जैसे फूलों का उपयोग किया जाता है। राज्य सरकार के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग एवं बागवानी विभाग ने होली पर रंग खेलने के शौकीनों को जैविक रंग सुलभ कराने के मद्देनजर एक स्वयं सहायता समूह से करार किया है। जैविक रंगों की बिक्री के लिए सिटी सेंटर 1 और सिटी सेंटर 2 के मॉल्स में शीघ्र ही आउटलेट खोला जायेगा जबकि राजरहाट, न्यू टाउन और साल्टलेक में मोबाइल आउटलेट(वैन) के जरिये इसे सुलभ कराया जायेगा। स्वयं सहायता समूह की 15 महिलाओं को जादवपुर विश्वविद्यालय की ओर से प्रशिक्षित किया गया है, जो इसके लिए काम करेंगी। इधर मामले पर डा. रमेश रजक से बात करने पर उन्होंने बताया कि प्राकृतिक रंग आमतौर पर घर में ही तैयार किए जाते हैं या फिर हर्बल कलर्स भी प्राकृतिक रंगों में शामिल होते हैं। क्या आप जानते हैं काले रंग के लिए लेड ऑक्साइड का इस्तेमाल होता है जो कि किडनी के लिए बहुत नुकसान दायक है। हरा रंग भी कॉपर सल्फेट जैसे पदार्थों से बनता है जो कि आंखों के लिए अच्छा नहीं है। इससे आंखों में एलर्जी, सूजन इत्यादि होने का खतरा रहता है। इतना ही नहीं लाल रंग को मरक्यूरी सल्फाइट से बनाया जाता है जिससे त्वचा कैंसर होने का खतरा रहता है। प्राकृतिक रंग सामान्य और रासायनिक रंगों से थोड़ा महंगे आते हैं और आसानी से बाजार में उपलब्ध नहीं होते, ऐसे में आप घर में ही प्राकृतिक रंग बना सकते हैं या फिर जैविक रंग बाजारों से खरीदकर इस्तेमाल करें।

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