छात्र आत्महत्या के मामले एक साल में दोगुने हुए

कोलकाता। राज्य में छात्रों की आत्महत्या एक बड़ी समस्या बनी हुई है। ऐसी ज्यादातर घटनाएं पारिवारिक समस्याओं और दोस्तों के दबाव के चलते होती हैं। कई बार परिजनों की डांट और आगे की पढ़ाई को लेकर दबाव के चलते छात्र ऐसे कदम उठाने को मजबूर होते हैं।पहले से गंभीर समस्या बनी हुई छात्रों की आत्महत्या को लेकर और भी चिंताजनक स्थिति केंद्र की रिपोर्ट से पता चलती है। इसके मुताबिक राज्य में छात्र आत्महत्या की घटनाएं एक साल में दोगुनी हो चुकी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में जहां यह संख्या 676 थी वहीं 2016 में यह 1147 पर पहुंच गई। बंगाल देश में दूसरा सबसे अधिक छात्र आत्महत्या के मामलों वाला राज्य बन गया है। महाराष्ट्र 1350 मामलों के साथ पहले स्थान पर है। केंद्र की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में साल 2016 में 9200 छात्र आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए। साल 2015 में यह आंकड़ा 8700 था। महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के बाद तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए। 2015 में पश्चिम बंगाल चौथे स्थान पर था। रिपोर्ट के मुताबिक मनचाही नौकरी न मिलना, परीक्षाओं में असफलता, प्रेम संबंधों का विफल होने, आर्थिक समस्याओं के कारण सबसे अधिक घटनाएं होती हैं। इस मामले में पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ डे का कहना है कि स्कूल और कॉलेजों को युवाओं के मन में विश्वास जगाना चाहिए। उन्हें यह समझाना चाहिए कि जिंदगी में मुश्किल समय का सामना करना ही पड़ता है। कई विशेषज्ञों को लगता है कि युवा मुश्किल हालात से जूझ नहीं पाते और जिंदगी से हार मान लेते हैं। साइकोथेरपिस्ट सीना मिश्रा के मुताबिक 1995-96 के बीच राज्य में छात्रों की आत्महत्या के मामले काफी अधिक थे। बाद में यह संख्या नीचे आई लेकिन हाल के वर्षों में यह फिर से बढ़ने लगी। वह भी अभिभावकों से बच्चों पर दबाव न डालने के लिए कहती हैं। उनका मानना है लोगों को अपने बच्चों से असफलताओं के बारे में बात करनी चाहिए और उन्हें यह समझाना चाहिए कि सफलताओं से जिंदगी में कोई फर्क नहीं पड़ता।
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