जगदीश यादव

veda-vyasa ganeshइस देश की धरती पर शायद ही कोई ऐसा राज्य हो जहां धार्मिक महत्व से ओतप्रोत कोई खास जगह नही हो। ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले में स्थित राउरकेला से 9 किमी दूर स्थित वेदव्यास नाम की जगह का विशेष धार्मिक महत्व है। जनश्रुतियों व स्थानीय लोगों की माने तो यह वह पवित्र भूमि है जहां पर महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की थी। इस स्थान पर पर कोयल, शंख व सरस्वती नदी का पानी आपस में आकर मिलता है। इस कारण इस स्थान को त्रिधारा संगम के नाम से भी जाना जाता है। बताया जाता है कि यहां से तीनों नदियां एक होकर ब्राह्मणी नदी के स्वारूप में बहती है। यहीं हमें एक गुफा दिखा , जिसके बारे में बताया गया कि इस गुफा में ही बैठकर महर्षि वेद व्यास जी ने महाभारत की रचना की थी। हालांकि इस दावे में कितनी सच्चाई है इसकी तस्दीक हम नहीं कर सके हैं। लेकिन कहते है कि आस्था के समक्ष काफी कुछ बौना हो जाता है। हमने उक्त गुफा में जाने की कोशिश की लेकिन हमे इसकी इजाजत नही मिली। बताया गया कि ऋषि कृष्ण द्वेपायन वेदव्यास को महाभारत को पूरा रचने में तीन साल लगे। महाभारत में सरस्वती नदी का उल्लेख किया गया है। सबसे उल्लेख है vedvyash ji gpha1कि कई राजाओं ने इसके तट के समीप कई यज्ञ किये थे। वैदिक काल में सरस्वती की बड़ी महिमा थी और इसे ‘परम पवित्र’ नदी माना जाता था। इसके तट के पास रह कर तथा इसी नदी के पानी का सेवन करते हुए ऋषियों ने वेद रचे औ‍र वैदिक ज्ञान का विस्तार किया।सरस्वती नदी पौराणिक ग्रन्थों तथा ऋग्वेद में वर्णित मुख्य नदियों में से बतायी जाती है। वैदिक आख्यानों के अनुसार महर्षि वेदव्यास निषादकन्या मत्स्यगंधा-सत्यवती और भार्गव पराशर ऋषि पुत्र बताये गये हैं। कहते है कि महर्षि वेदव्यास हृदय में ही महाभारत की रचना कर लिया था। इस काव्य के ज्ञान को वह सामान्य जन तक लाना चाहते थें लेकिन कोई उत्तम कलमकार नहीं मिल रहा था।ब्रह्मा जी के कहने पर व्यास गणेश जी के पास पहुंचे। गणेश जी ने एक शर्त रखी कि कलम एक बार उठा लेने के बाद काव्य समापन होने तक वे बीच नहीं रुकेंगे। ऐसी मान्यता है कि गणेश जी ने अपने इसी टूटे दांत से महाभारत महाकाव्य की रचना की।

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