कोलकाता। बंगाली फिल्मों के इतिहास और उनकी विकास गाथा बताने के लिए स्थायी तौर पर एक दीर्घा बनाई जानी चाहिए क्योंकि अभी तक इन्हें उचित रूप से प्रदर्शित नहीं किया गया। उक्त बात आज फिल्म निर्देशक गौतम घोष ने कही। उन्होंने कहा कि हाल ही में कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2017 में बंगाली सिनेमा में इस्तेमाल किए गए विंटेज कैमरा और अन्य स्टूडियो उपकरण दिखाए गए थे जिन्हें एक दीर्घा में स्थायी रूप से रखा जाना चाहिए।
शंखाचिल के निर्देशक ने कहा, इस प्रस्तावित प्रदर्शनी में यह दिखाया जाएगा कि पिछले वर्षों में कैसे हमारी फिल्मों का विकास हुआ लेकिन और भी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।घोष ने बांग्ला सिनेमा 100 प्लेटफॉर्म के शुभारंभ पर  कहा कि पिछली सदी में बनी फिल्मों के प्रमाणित दस्तावेजों के लिए बंगाली सिनेमा के पूरे इतिहास की जानकारी हासिल करने के वास्ते निरंतर शोध करना चाहिए। घोष ने कहा कि वर्ष 2013 में भारतीय सिनेमा के 100 वर्ष पूरे होने पर संस्कृति मंत्रालय ने 80 से 100 फिल्मों का डिजिटलीकरण किया जिनमें तीन-चार फिल्में उनकी हैं।उन्होंने कहा, कोई भी चारू रॉय द्वारा 1930 में स्थापित पहली फिल्म सोसायटी के बारे में बात नहीं करता। उन्होंने कहा कि ऐसी कई घटनाएं हैं।अभिनेता प्रसेनजीत चटर्जी और रंजीत मलिक की मौजूदगी में बांग्ला सिनेमा 100 अभियान का शुभारंभ करने वाले फिल्म निर्देशक ने कहा, हम राज्य सरकार से अनुरोध करेंगे कि वह बंगाली सिनेमा के पूरे इतिहास को दस्तावेजों के रूप में पेश करने के बड़े काम में मदद करें।उन्होंने कहा, पाथेर पांचाली 1955 या मेघे ढाका तारा 1960 जैसी फिल्में निश्चित तौर पर बंगाली सिनेमा के इतिहास में मील का पत्थर है लेकिन कई अन्य फिल्में भी हैं जिन्हें देरी होने से पहले पहचान दिए जाने की जरूरत है।
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