कोलकाता। विकासशील देशों में स्वास्थ्य सेवा की सीमित पहुंच होने के कारण वहां नवजात शिशु मृत्यु दर सबसे ज्यादा है। ज्यादातर नवजात शिशुओं की मृत्यु उचित देखभाल के अभाव में घर पर ही हो जाती है। गर्भावस्था, जन्म और जन्म के तत्काल बाद उचित देखभाल करने से मां और नवजात को होने वाली परेशानी से बचाया जा सकता है और समस्याओं को जल्द पकड़कर उनका समाधान किया जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और यूनीसेफ ने इसी संदर्भ में शिशु जीवन संभावना बढ़ाने के लिये उसके जन्म के पहले सप्ताह में प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा घर जाकर जांच करने की सलाह दी है। इन संगठनों का कहना है कि औसत वजन से कम वजन के जन्मे बच्चे, अपरिपक्व गर्भ, एचआईवी संक्रमित मां से जन्मे या बीमार बच्चों को जन्म के तत्काल बाद विशेष देखभाल के लिये अस्पताल में भर्ती कराया जाना चाहिए। अपरिपक्व गर्भ, जन्म के समय कम वजन, संंक्रमण, जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी और जन्म के समय घाव होने से नवजात शिशुओं की मृत्यु के पीछे प्रमुख कारण हैं। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की जीवन संभावना बढ़ाने के लिये स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाना होगा जैसे जन्म के समय प्रशिक्षित कर्मी की मौजूदगी उपस्थिति अनिवार्य होनी चाहिये।नवजात जीवन संभावना दर बढ़ाने के लिये नवजात के जन्म के तत्काल बाद प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मी द्वारा देखभाल करानी चाहिये। विकासशील देशों में घर पर जन्म कराने की प्रक्रिया ही प्रचलित है। इन देशों में मात्र 13 प्रतिशत महिलाओं को ही बच्चे के जन्म के 24 घंटों में चिकित्सा मिल पाती है।स्वास्थ्य केन्द्रों में जन्म देने वाली कई महिलाएं शिशु के जन्म के बाद आर्थिक, सामाजिक या अन्य परेशानियों के कारण अस्पताल नहीं जा पाती हैं।नवजात की जीवन संभावना के लिये जन्म का पहला सप्ताह सबसे महत्वपूर्ण होता है और इस दौरान नियमित चिकित्सकीय जांच अनिवार्य होनी चाहिए।निरीक्षण के समय प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मी को चाहिए कि वह मां को प्रेरित करे कि जन्म के एक घंटे के अन्दर मां शिशु को स्तनपान कराए और बच्चे को शारीरिक संपर्क में रखकर उसे गर्मी प्रदान कराए।

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