नदिया/शांतिपुर।

वर्दवान में गंगा नदी में हुए नौका डूबने की घटना में अभीतक 18 लोगों की मौत की खबर है। फुलिया से लेकर बालागढ़ तक के गंगाघाट से उपरोक्त शवों को बरामद किया गया है। खबर के लिखे जाने तक एनडीआरएफ की टीम के द्वारा राहत कार्य को अंजाम दिया जा रहा था। ज्ञात हो कि एक बार फिर पश्चिम बंगाल ’में  नाव डूबने की घटना घटी है। लेकिन घटना के कम से कम बारह घंटे के बाद पुलिस व व्यवस्था के कथित लापरवाही के आरोप के तहत लोग उग्र हों गये। इस दौरान उग्र भीड़ ने रविवार को नरसिंह फेरीघाट संलग्न इलाके में जमकर तोड़फोड़ व आगजनी की है। पुलिस व लोगों से मिली जानकारी में बताया जा रहा है कि उग्र लोगों ने जहां 2लंच सह 6 नौकाओं में आगजनी की वहीं पुलिस पर जम के पथराव भी किया जिसमें शांतिपुर थाने के एक सब इंस्पेक्टर इलियास सह दो पुलिस कर्मी घायल हों गये हैं। यहीं नहीं भीड़ ने एएसपी को भी खदेड़ दिया । खबर के लिखे जाने तक जिले के डीएम सौमित्र मोहन व एसपी गौरव शर्मा के नेतृत्व में भीड़ को काबू किया गया। आरोप है कि भीड़ से निपटने के लिये पुलिस ने जम के लाठी चार्ज व आंसू गैस का इस्तेमाल किया। दर्जन भर लोग हिरासत में लिये गये हैं। प्राथमिक जानकारी ’में बताया जा रहा है कि घटना वर्दवान जिले के शांतिपुर थाना इलाके में तब घटी जब एक नाव कालना से शांतिपुर के नृसिंह घाट जा रही थी। नाव के गंगा नदी में डूबने से कई लोग लापता हो गए हैं।  चश्मदीदों के मुताबिक नाव की कुल सवारी क्षमता 60 से 70 लोगों की थी, लेकिन उसमें 150लोग सवार थे। खबर के लिखे जाने तक अपुष्ट 18 लोगों की मौत नाव हादसे में हुई है। जबकि कई लोग लापता हैं। बताया जा रहा है कि ओवरलोडिंग होने की वजह से नाव डूबी है।  लोगों ने बताया कि हादसे के बाद मदद भी 12 घंटे से ज्यादा देर में पहुंची और अब भी कई लोग लापता हैं। प्रशासन का कहना है कि सर्च ऑपरेशन जारी है। हादसे के बाद सही समय पर मदद न मिलने की वजह से फेरी घाट पर प्रदर्शन कर रहे लोगों ने नावों में आग भी लगा दी। मौके पर मौजूद लोग यह भी आरोप लगा रहे हैं कि हादसे के बाद प्रशासन के लोग मदद के लिए कई घंटों के बाद पहुंचे। उधर, प्रशासन से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि सर्च अभियान चलाया जा रहा है और नदी में डूबे लोगों को सकुशल निकाले जाने के प्रयास किये जा रहे हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि शनिवार को नाव में सवार लोग भवा भवानी मंदिर परिसर में लगें मेले से लौट रहें थें। लापता लोगों में एक बच्चा भी बताया जा रहा है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

नवयुग के नव भास्कर आचार्य महाश्रवण

जन्मदिन पर विशेष  फोटो

इस धरती ही नहीं यूं कहें कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को सदमार्ग के पथ पर रास्ता दिखाने के लिये महान ही नहीं पूज्य संतों का उदय होता रहा है। जिनमें से आचार्य महाश्रमण की बात ही कुछ और है।  भगवान महावीर ने चतुर्विध धर्म संघ को लेकर एक नये तीर्थ की स्थापना की है जिसे जैन धर्म कहा गया है। उनके  अमूल्य सिद्धान्तों पर चलने वाले पंच महाव्रत धारी साधु-साध्वी कहलाए और अणुव्रतधारी श्रावक-श्राविका। विभन्न शाखाओं में बंटे जैन धर्म की एक मजबूत सशक्त शाखा है तेरापंथ धर्म संघ। जो एक आचार, एक विचार और एक आचार्य की  अनुशासना में पिछले ढाई सौ वर्षो में विकास की ओर अग्रसर हैं। जहां आचार्य द्वारा लिया निर्णय बिना किसी तर्क के सैकड़ों साधु-साध्वी  और लाखों श्रावक-श्राविका मानते हैं। इसी तेरापंथ धर्म संघ के देदिप्यमान सूर्य जिसकी रश्मियां विश्व के सभी कोणों को जगमगा रही हैं। जिनके नेतृत्व में तेरापंथ धर्म संघ अध्यात्म की नव ऊँचाइयों को छूने को बढ़ चुके वो हैं आचार्य भिक्षु के 11 वें उत्तराधिकारी तेरापंथ धर्म संघ के 11वें सूर्य और नव इतिहास के सृजनहार आचार्य महाश्रमण। क्या है इनमें ऐसा कि लोग सिर्फ इन्हें देख लें तो आकार्षित हो जाएं।  कैसा है इनका व्यक्तित्व जिससे आँखे हटने को तैयार ही न हों? देदिप्यमान ललाट, समाधान से लबालब आँखें, मोहक मुस्कराहट, ओजस्वी  वाणी, ब्रहम्चर्य का अखण्ड तेज, विश्वास से भरे कदम, इन सभी को एक सूत्र में पिराएं तो जिस माला का निर्माण हो उस माला का नाम है, आचार्य महाश्रमण। राजस्थान का छोटा सा शहर सरदारशहर जहां रहने वाले झुमरमलजी व नेमी देवी के यहा पचास वर्ष पूर्व 13 मई 1962 को एक सूर्य का उदय हुआ। उसकी मोहक मुखाकृति को देखकर माता-पिता ने नाम रखा मोहन। तेरह तारीख 13 का आंकड़ा राजस्थान में थोड़ा अशुभ माना जाता है और नवमी का दिन 9 की संख्या जिसे अखण्ड माना जाता हैं। अर्थात मोहन का जन्म शुभ-अशुभ दोनों के संयोग से भरा था। आठ भाई-बहनों मे सातवें स्थान पर मोहन के पिता का निधन बचपन में ही हो गया। छोटा सा गाँव, विधवा माँ और आठ-आठ बच्चे। माँ ने सभी बच्चों को सुसंस्कारी बनाया और साधु साध्वियों की निश्रा में भेजना प्रारम्भ किया। पहले अनमने भाव से फिर इच्छा से मोहन साधु-साध्वियों के यहां जाने लगा। 10 वर्ष की उम्र में बालक मोहन अर्हत वंदना सीखने लगा और घर आकर माँ को भी सिखाता। जितना विनम्र शिष्य था उतना ही कुशल अध्यापक भी बना। धीरे-धीरे बालक मोहन के मन में वैराग्य का प्रस्फुटन होने लगा। तेरापंथ धर्म संघ में साधु पद के लिए उम्मीदवार नहीं योग्य बनना होता है। अत: बालक मोहन ने खुद को वैराग्य की कसौटी पर कसना शुरू किया। सर्व योग्य बनने पर आचार्य तुलसी के आज्ञा से मुनि सुमेरमलजी लाडनूं ने 5 मई 1974 को सरदारशहर में दीक्षा प्रदान की और नाम रखा मुनि मुदित। यथा नाम तथा गुण धारक मुदित मुनि ने मात्र पैंतालीस दिन में दशवैकालिक सूत्र को कंठस्थ कर लिया। गहन जिज्ञासू, अनुशासन प्रिय,मृदुभाषी बाल मुनि की शिक्षा का महत्वपूर्ण अध्याय मुनि सुमेरमलजी ने रचा। तत्पश्चात गणाधिपति तुलसी और आचार्य श्री महाप्रज्ञ के वरद हस्त का सानिध्य मिला, जहां जीवन के सर्वांगीण विकास का प्रारम्भ हुआ। मुदित मुनि की अप्रमादता, उनका समर्पण और जिज्ञासु वृति को देखकर गणाद्यिपति तुलसी ने वि.स. 1896 को इन्हें गणाधिपति के स्वाध्याय, लेखन, अध्ययन, संशोधन और अनेक कार्यों के लिए  सहयोगी नियुक्त किया। गणाधिपति की विशेष प्ररेणा से राजस्थानी, हिन्दी, प्राकृत, संस्कृत,के साथ अंग्रेजी भाषा पर भी आपका अधिकार है। आलोचना व  प्रशंसा से मुनि मुदित न कभी नाराज होते न व्यर्थ की बातों में पड़ते। अहंकार का तो इनसे कोई रिश्ता ही नहीं है। इन्हीं गुणों के कारण वि. स. 1896 में मर्यादा महोत्सव पर इन्हें युवाचार्य महाप्रज्ञ का अन्तरंग सहयोगी नियुक्त किया इसी वर्ष इन्हे अग्रगण्य भी बनाया । 6 सितम्बर को लाडनू में इन्हें महाश्रमण पद प्रदान किया और मुनि मुदित से ये महाश्रमण मुनि बन गये। यौवन के तेज से परिपूर्ण विकास की राहो में अग्रसर महाश्रमणजी को गणाधिपति तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ ने 14 सितम्बर 1997 को तेरापंथ धर्म संघ के उत्तराधिकारी के रुप में युवाचार्य, प्रज्ञा,निष्ठा, शील, मर्यादा, ज्ञान, आत्मानुशासन, विनम्रता, सहजता,सरलता और अनेक गुणों से परिपूर्ण युवाचार्य महाश्रमण ने9 मई 2010 को आचार्य महाप्रज्ञ के देवलोकगमन पश्चात संघ की बागडोर सम्भाली। दो-दो आचार्यों द्वारा गठित,उनके अनुभव से परिपूर्ण आचार्य महाश्रमण आज घर-घर जाकर भगवान महावीर के सिद्धान्तों को सर्वजन पहुंचाने में प्रयासरत हैं। आज आचार्य बनने के बाद भी अपने दिक्षा गुरु सुमेरमलजी के प्रति वे उतने ही विनम्र शिष्य हैं जितने पहले थे। और इसी समर्पण भाव से उन्होंने उन्हें मंत्रीमुनि (सुमेरमलजी (लाडनूं) की पदवी से विभूषित किया। तेरापंथ धर्म संघ के प्रथम आचार्य श्री भिक्षु ने केलवा में चातुर्मास कर इस संघ की नींव रखी। और उसी धर्म संघ के ग्यारहवें आचार्य पुन: उसी धरती पर अपना प्रथम चातुर्मास कर नये इतिहास के सृजन की ओर अग्रसर  हैं। उस महामना को शत शत वंदन।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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