ashok pandey

लेखक परिचयः लगभग तीन दशक से अंग्रेजी व हिन्दी के समाचार पत्रों में बड़े ओहदें पर पत्रकारिता। अपने अक्खड़ व बेबाकीपन से भी जाने जाते हैं। अपनी डफली अपना राग । जहां से खड़े वहीं से रास्ता शुरु.

अशोक पाण्डेय
दिल्ली की हवा, बड़ी बेवफा है। ये ससुरी किसके पाले में कब बहने लगे-कहा नहीं जा सकता। कई विदेशी हुकूमतें इसने देखी हैं। अब देशी हुकूमत का भी स्वाद चख रही है। लेकिन इसकी बेवफाई बदस्तूर जारी है। इसने साढ़े तीन साल पहले छप्पन इंच छाती वाला एक नया पीएम देखा था। संसद की चौखट पर मत्था टेकने वाले एक लोकतंत्र के पुजारी का स्वागत किया था। तब से बहुत कुछ बदलता चला गया है।
कितने स्वदेशी-विदेशी मेहमान आये, गये। हवा आहिस्ता-आहिस्ता बोझिल होती गई है। अब तो आलम यह है कि इस हवा में आम लोगों की कौन पूछे, खास लोग भी बमुश्किल ही राहत की साँस नहीं ले पा रहे। एक-एक साँस बोझ बन गई है। प्रदूषण का असर दीवान-ए-खास पर भी हुआ है। जिस छप्पन इंच को देखकर बड़े-बड़े सूरमा थर्राते थे, इस हवा ने थर्राने वालों को गुर्राने का मौका दे दिया है।
गुर्राने वाले बाहरी नहीं, घर के ही लोग हैं। मिस्टर छप्पन से उसी खेमे के लोग पूछ रहे हैं, नोटबंदी में कितने लोग सुसाइड किये, कोई हिसाब है? दूसरा व्यंग्य करता है-जीएसटी जब खुद ही नहीं समझ सका, तो दूसरों को क्या समझाऊं? तीसरे सांसद का कहना है- छप्पन साहब सवालों से बचते हैं। किसानों की फिक्र कौन करे?
जी हां, ये हैं तीन भाजपा प्रतिनिधि। इलाहाबाद के सांसद श्यामाचरण गुप्त का संसद की आर्थिक मामलों की स्थाई समिति की बैठक में यही सवाल था- नोटबंदी का क्या हाल है? नोटबंदी से कितने लोगों ने आत्महत्या की-इसकी कोई सूचना है? उधर मध्यप्रदेश के मंत्री ओमप्रकाश ध्रुवे का कहना है कि जीएसटी मैं तो खुद ही नहीं समझ पाया, दूसरों को क्या खाक बताऊं? इस कड़ी में महाराष्ट्र के भाजपा सांसद नाना पाटोले दो कदम और आगे निकल चुके हैं।
इनका कहना है कि जब पीएम ही सवालों से कतराते हैं तो किसानों की भलाई कैसे होगी? आत्महत्याओं का दौर अब भी जारी है। दिल्ली की इस बेवफा हवा का ही कमाल है कि इन सारे लोगों की जुबान अब हिलने लगी है। नाना पाटोले ने तो बाकायदा अपनी ही केंद्र सरकार के विरुद्ध 1 दिसंबर को कृषकों की सभा आयोजित की है, जिसमें यशवंत सिन्हा और शत्रुघ्न सिन्हा को बुलाया है। लगता है सचमुच हवा रुख बदल रही है। प्रधानसेवक को चौकन्ना रहने की जरूरत है। दिल्ली की हवा कब-किसे-कहां ले जाय, कहा नहीं जा सकता। बच-बच कर पासे फेंकने का वक्त है, मी लॉर्ड..।

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