भारत- पाक के बीच उलझा 80 वर्षीय का भविष्य 

कोलकाता। इसे विडम्बना कहे या कुछ और, एक ऐसे कैदी पी. यूसुफ के बारे में जानकार हैरत होगी जिसने अपने अपराध के लिये जेल में सजा भी काटी लेकिन जब आजादी का समय पार हो गया तब भी जेल की सलाखों के अन्दर रहना पड़ रहा है। अपराध के लिए मिली सजा पूरी होने के बाद हर कैदी को जेल से आजाद किया जाना चाहिए, लेकिन कोलकाता की दमदम जेल में बंद एक 80 साल का कैदी तय वक्त से ज्यादा सजा काटने को मजबूर है। पी. यूसुफ नाम के इस कैदी का भविष्य दो देशों यानी भारत और पाकिस्तान के बीच उलझा हुआ है। साथ ही संवाद भी भाषा अलग होना भी उसकी रिहाई के आड़े आ रहा है। सजा के दो साल पूरे करने के बाद भी यह कैदी बीते 6 साल से जेल में बंद है। बताया जा रहा है कि यूसुफ को 6 साल पहले संदिग्ध रूप से घूमने की वजह से बनगांव से गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद उन्हें निचली अदालत में पेश किया गया। जब कोर्ट ने उनकी नागरिकता के बारे में उनसे पूछा गया तो वह जज की भाषा नहीं समझ पाए। यह बात यूसुफ के खिलाफ गई और उन्हें अवैध रूप से घुसपैठ के आरोप में दो साल की सजा सुनाई गई। भारत में उनकी नागरिकता संदिग्ध मानी गई। जांच अधिकारियों के मुताबिक, यूसुफ पाकिस्तान के नागरिक हैं। लेकिन पाकिस्तान उन्हें अपना नागरिक मानने को तैयार नहीं है। मामले में नया मोड़ तब आया जब केरल से यूसुफ के कथित परिवार के सदस्यों ने कोलकाता आकर उनसे मिलने का प्रयास किया। कुछ वकीलों ने भी यूसुफ की रिहाई को लेकर प्रयास शुरू किए।इस संबंध में उन्होंने कोलकाता हाई कोर्ट की डिविजन बेंच में याचिका भी दायर की। मुख्य न्यायाधीश ज्योर्तिमय भट्टाचार्य और जस्टिस अरिजीत बनर्जी की बेंच ने मामले पर सुनवाई की। सरकारी वकील तपन मुखर्जी ने पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक यूसुफ को पाकिस्तान का नागरिक बताया, जबकि यूसुफ के वकील देबाप्रिय मुखर्जी का कहना था कि पाकिस्तान ने उन्हें अपना नागरिक मानने से इनकार किया है। इस दौरान केंद्र के अडिशनल सॉलिसिटर जनरल कौशिक चंद्र ने कहा कि अगर उनका भारतीय नागरिक होना साबित नहीं हुआ और पाकिस्तान ने भी उन्हें अपना नागरिक नहीं माना तो यूसुफ को किसी भी सूरत में जेल से आजादी नहीं मिलेगी। फिलहाल यूसुफ जेल में ही रहने को मजबूर हैं।
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