जगदीश यादव

jagdish yadav

लेखक अभय बंग पत्रिका व अभयटीवी डॉट कम के सम्पादक हैं। संपर्क न. 09831952619/ 09804410919

मुकुल राय द्वारा भाजपा का दामन थामने के बाद से राज्य में एक बार फिर जन चर्चाओं का दौर शुरु हो गया है कि हैं। बस हो ट्रेन, ट्राम हो या फिर शेयर की टैक्सी हर जगह भाजपा में जाने वाले मुकुल राय की चर्चा आम है। लोगों के बीच कहा जा रहा कि भाजपा के लिये मुकुल फूल साबित होंगे या भूल। यह तो वक्त बताएगा। लेकिन राजनीति में छोटी सी भूल कभी कभी सिर पीटने का कारण बन सकती है तो जनबूझ कर उठाया गया जोखिम भविष्य का फयदा भी बन जाता है। भाजपा आला कमान की नीति क्या है यह तो वह जाने लेकिन बंगाल की राजनीति में भाजपा का मुकुल राय द्वारा दामन थामना एक कठोर कदम तो कहा ही जा सकता है। भले ही कुछ लोग इस कदम को मजबूरी भी मान सकते हैं। कुल मिला कर फिर वहीं बात की राजनीति में कब क्या हो कुछ कहा नहीं जा सकता है। लेकिन अनुभव और राज्य की राजनीतिक आबोहवा की पहंचान कर उठाई गई कदम का परिणाम दूर तक दिखता है। आम चर्चा के अनुसार मुकुल राय भगवा खेमे में नारदा व सारदा जैसे तमाम मुश्किलों से निजात पाने के लिये आये हैं। इसका फायदा बीजेपी को मिले सकता है और तृणमूल के नेटवर्क और उसकी कार्यशैली की पूरी जानकारी आसानी से मिलने की सम्भवना से इंकार भी नहीं किया जा रहा है। वहीं तृणमूल से लगभग काट दिये गये मुकुल को एक बड़े प्लेटफार्म की जरूरत थी और बीजेपी को बंगाल में एक ऐसे नेता की जरुरत थी जो बंगाल के ग्राम अंचलों से लेकर शहर पर बी अपनी पकड़ रखता हो।  ऐसे में दोनों एक दूसरे के लिए पूरक साबित हो सकते हैं। लेकिन मुकुल राय के इस कदम से बीजेपी को कितना फायदा होगा और तृणमूल को कितना नुकसान होगा यह सवाल जरुर उठ रहा है।वैसे लोगों में यह भी सवाल उठ रहा है कि असम में भी बीजेपी सरकार इसीलिए बना पायी क्योंकि हिमंता बिस्वा सरमा ने तरुण गोगोई का साथ छोड़ दिया था? क्या यूपी में मायावती को सत्ता में आने से इसीलिए रोका जा सका क्योंकि स्वामी प्रसाद मौर्य बीजेपी के साथ आ गये थे? क्या उत्तराखंड में बीजेपी सत्ता इसीलिए हथिया सकी क्योंकि विजय बहुगुणा कांग्रेस के बड़े नेताओं को लाकर मैदान खाली कर दिये थे। इन सभी सवालों का एक जवाब क्या हां या नहीं में दिया जाकता है?।  सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या मुकुल राय के भाजपा में आने से कोई बड़ा बैंक पार्टी से जुड़ जाएगा? राज्य की राजनीति के जानकारों का मानना है कि ऐसे नहीं हो सकता है।कारण राज्य में अबतक ममता बनर्जी के साये में अपना राजनीतिक कद बढ़ाने वाले मुकुल राय के साथ ऐसा कोई चमात्कारिक चेहरा नहीं माने जाते हैं। वह बंगाल में राजनीति का केन्द्र बने अल्प संख्यकों को अपने पाले में ला सकें ऐसी सम्भावना भी क्षीण ही है।राज्य की राजनीति के जानकारों का मानना है सिर्फ मुकुल को भी बीजेपी की जरूरत थी और उन्होंने कुछ नेताओं के जरिये अपना मतलब निकाल लिया।  लेकिन राजधानी दिल्ली में बैठें देश दुनिया की राजनीति के जानकार बताते हैं कि ऐसा नहीं है। इन लोगों का मानना है कि  मुकुल राय को भाजपा में लाने से पहले काफी चीजों पर ध्यान दिया गया। राजनीति के तमाम जानकारों ने दिन रात एक किया और माना जा रहा है कि बीजेपी के लिए यह बड़ा सौदा है।सच तो यह है कि भाजपा को राज्य में अपनी ज जमानी हैं।  विधानसभा चुनाव से लेकर निकाय चुनाव में बीजेपी तमाम कोशिशें कर चुकी है। नतीजा खास नहीं रहा। कईयों के दावे व सलाह के अनुसार मुस्लिम कैंडिडेट भी मैदान में उतारे लेकिन क्या हुआ सबको पता है। कहा जाता है कि मुकुल राय बंगाल में ममता की जीत को धराताल पर लाने के एक ऐसे नायक हैं जो पर्दे के पीछे रहें। शायद यही कारण भी रहा होग कि  दीदी ने भी उन पर आंख बंद कर भरोसा किया। लेकिन कहते है कि राजनीति में सत्ता की कुर्सी का नशा ऐसा होता है कि हर शासक चहता है कि इस नशे को उनके अपने ही चखे। तो क्या इसी मानसिकता के शिकार मुकुल राय को होना पड़ा। आपको याद दिला दें कि बता उस समय की है जब मुकुल राय की दुसरी बार तृणमूल कांग्रेस में घर वापसी हो गई थी। लेकिन उन्हें कोई पद नहीं दिया गया था। नेताजी इंडोर स्टेडियम की सभा में मुकुल जब भाषण दे रहे थे, तृणमूल कांग्रेस के अखिल भारतीय महासचिव सुब्रत बख्सी ने दो बार उनका कुर्ता खींच कर भाषण बंद करने का संकेत दिया। इससे जहां मुकुल के ज्यादा बोलने का विरोध स्टेडियम में 20 हजार लोगों ने देखा वहीं मुकुल ने भी भाषण रोकने की कोशिश का विरोध किया। जानकारों का मानना है कि सिर्फ बख्सी ही मुकुल विरोधी हैं, ऐसा नहीं है। तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी, शोभन चट्टोपाध्याय, दो मंत्री अरुप विश्वास और फिरहाद हाकिम भी मुकुल राय को महत्व दिये जाने के खिलाफ थें। पार्टी में नंबर दो माने जाने वाले ममता के सांसद भतीजे अभिषेक बनर्जी भी लंबे समय तक दल से दूर रहे मुकुल को पुरानी जगह देने के हक में नहीं थें।

 

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