पं.विजय उपाध्याय शास्त्री

सेंट्रलडेस्क। एक बार की बात है भगवान शंकर माता पार्वती के साथ नर्मदा के तट पर गए। पार्वती जी ने भगवान शंकर के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की। अब सवाल खड़ा हुआ कि इनलोगों के हार-जीत का साक्षी कौन होगा? तभी पार्वती ने वहां की घास के तिनकों को जमा कर एक बालक का पुतला बनाया और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा कर दिया। माता पार्वती ने पुतले से कहा कि बेटा हम चौपड़ खेलेगें व तुम उक्त खेल में हार जीत का साक्षी बनना। चौपड़ के खेल में तीनों बार पार्वती जी ही जीतीं। जब अंत में बालक से हार-जीत का निर्णय कराया गया तो उसने भगवान शंकर को ही विजयी करार दिया। बालक के गलत निर्णय से पार्वती जी ने क्रोध में उसे उसे एक पाँव से लंगड़ा होने और कीचड़ में पड़ा रहकर दुःख भोगने का शाप दे दिया।ganesh-ji-3cg_05_09_2014
शाप के कारण बालक ने विनम्रतापूर्वक कहा- मात मैने मुझसे अज्ञानता में ऐसा गलत निर्णय दिया है निर्णय के पिछे कुटिलता या द्वेष नहीं है। मुझे क्षमा करें और शाप से मुक्ति का उपाय बताएं। तब जगदजननी माता पार्वती को उस पर दया आ गई और वे बोलीं- यहाँ नाग-कन्याएं श्रीगणेश के पूजन को आएंगी। उनके सलाह पर तुम गणेश व्रत व पूजन कर मुझे प्राप्त करोगे। इतना कहकर माता पार्वती कैलाश पर्वत चली गईं।कुछ समय के बाद वहां नाग-कन्याएं श्री गणेश पूजन के लिए आई। नाग-कन्याओं ने गणेश व्रत करके उस बालक को भी व्रत की विधि को बताया । उक्त बिधि को जानकर बालक ने 12 दिन तक श्रीगणेशजी का व्रत किया। तब गणेशजी ने उसे दर्शन देकर मनोवांछित वर मांगने को कहा । बालक ने श्री गणेश से वर मांगा कि मेरे पांव में इतनी शक्ति दें भगवन कि मैं कैलाश पर्वत पर गणेशजी ने बालक को वर दिया व अंतर्धान हो गए। बालक भगवान शिव के चरणों में पहुंच गया।शंकर जी ने उससे वहाँ तक पहुंचने के साधन के बारे में पूछा।अपने माता-पिता के पास जा सकूं और वे मुझ पर प्रसन्न हो ।गणेशजी ने बालक को वर दिया व अंतर्धान हो गए। बालक भगवान शिव के चरणों में पहुंच गया।शंकर जी ने उससे वहाँ तक पहुंच चौपड़वाली घटना से धर माता पार्वती नाराज होकर पार्वती शिवजी से नही मिल रही थी। भगवान शंकर ने भी बालक की तरह २१ दिन पर्यन्त श्रीगणेश का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पार्वती के मन में स्वयं महादेवजी से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई।ने के साधन के बारे में पूछा। तब बालक ने सारी कथा शंकर जी को सुना दी।वे शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ पहुंची। कैलाश पहुँचकर पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा- भगवन! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं आपके पास दौड़ी आ गई हूँ। शिवजी ने ‘गणेश व्रत’ के बारे में बताया । अब मातापार्वतीजी ने अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन पर्यन्त 21-21 की संख्या में दूर्वा, पुष्प तथा लड्डुओं से गणेशजी का पूजन किया। 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वतीजी से आ मिले। उन्होंने भी मां के मुख से इस व्रत का माहात्म्य सुनकर व्रत किया।कुमार कार्तिकेय ने यही व्रत विश्वामित्रजी को बताया। विश्वामित्रजी ने व्रत करके गणेशजी से ‘ब्रह्म-ऋषि’ होने का वर मांगा। गणेशजी ने उनकी मनोकामना पूर्ण की। श्री गणेश के व्रत को करेवाले की सभी बाधाएं दूर होती है और हर मनोकामना पूर्ण।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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