पारुल बैरागी

सेंट्रल आस्था डेस्क। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन निषिद्ध बताया गया है।मान्यता है कि जो व्यक्ति इस गणेश चतुर्थी की रात्रि चन्द्रमा का दर्शन करते हैं, उन्हें झूठा-कलंक प्राप्त होता है। जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो निम्न मंत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए।

।’सिहः प्रसेनम्‌ अवधीत्‌, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः॥’-

Jambavanभाद्रपद शुक्र चतुर्थी के दिन दोपहर के समय श्री गणेश जी का जन्म हुआ था। इस दिन चन्द्रमा के भूलकर भी दर्शन नहीं करने चाहिए। ऐसा करने पर लोगों को अपने जीवन में कलंक लग सकता है। एक उपाय यह भी बताया गया है कि यदि भूल से चंद्रमा के दर्शन हो जाएं, तो एक छोटा सा पत्थर किसी की छत, खपरैल, छज्जा पर फेंक देने से कलंक से बचाव हो सकता है। कुछ जगहों पर मान्यता है कि जिसके छत, खपरैल, छज्जा पर पत्थर फेंका गया है अगर उसका मालिक गुस्से में अपशब्द कह दे तो दोष कट जाता है। इसलिए इस चतुर्थी को पत्थर चौथ भी कहा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण जी को गणेश चतुर्थी के दिन अनजाने में चन्द्र के दर्शन हो जाने से चंद्र दोष लगा था। राजा सत्यजीत को सूर्यदेव ने एक मणि दी थी। भगवान कृष्ण उक्त मणि उग्रसेन को दिलवाना चाहते थे, यह बात सत्यजीत को मालूम हो गई, तो उसने मणि अपने भाई राजा प्रसेन को दे दी। राजा प्रसेन जंगल में शिकार खेलने गये व एक शेर का शिकार हो गये। शेर ने राजा प्रसेन को मार कर मणि ले ली। दुसरी ओर शेर को मार कर रीछ राज जामवंत ने मणि अपने कब्जे में कर लिया व मणि अपने बच्चों को खेलने के लिए दे दी। चारों ओर यह संदेश गया कि मणि के लिये ही श्रीकृष्ण ने प्रसेन के साथ छल किया है। यानी भगवान श्रीकृष्ण पर झूठा कलंक लग गया। अपने आप को निर्दोश प्रमाणित करने के लिये भगवान श्रीकृष्ण ने रीछ राज जामवंत से 21 दिन भयंकर युद्ध किया। जामवंत ने जब भगवान को पहंचान लिया तो नतमस्तक हो गया और अपनी कन्या जामवंती व मणि को भगवान को सौंप दी। बाद में मणि को भगवान कृष्ण ने भरी सभा में सत्यजीत को सौंप दी। सत्यजीत ने भगवान श्रीकृष्ण पर मणि गबन का कलंक लगाया था। इसके प्रायश्चित स्वरूप में उसने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह कृष्ण से कर दिया।

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