अभिभावक ढूंढ रहे बच्चों के लिए नया स्कूल

कोलकाता। गोरखालैंड विवाद को लेकर इस वक्त बंगाल का समूचा पहाड़ी इलाका जल रहा है। वहां के स्थानीय लोगों के साथ दार्जिलिंग, केलिमपोंग और कुरसोंग जैसे शहरों के मशहूर बोर्डिंग स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के पैरंट्स भी काफी परेशान हैं। अलग गोरखालैंड के लिए चलाए जा रहे आंदोलन का अब 50वां दिन है और इसके खत्म होने के आसार फिलहाल नजर नहीं आ रहे हैं। यहां के बोर्डिंग स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के कई पैरंट्स अपने बच्चों के लिए सिलिगुड़ी और दूर-दराज के शिमला और दिल्ली के स्कूलों में ऐडमिशन के लिए कोशिश कर रहे हैं।
गोरखालैंड को लेकर चल रहे विवाद और क्षेत्र में अशांति को देखते हुए पैरंट्स अपने बच्चों को सुरक्षित जगहों पर भेजने की कोशिश में जुट गए है। दार्जिलिंग और केलिमपोंग में कई नामचीन स्कूल जैसे सेंट पॉल, नॉर्थ पॉइंट, डॉहिल, सेंट हेलेना हैं, जिनमें सिर्फ कोलकाता और बंगाल ही नहीं देश के कई हिस्सों से बच्चे पढ़ने आते हैं। आसपास के पड़ोसी देशों जैसे नेपाल और बांग्लादेश के भी कुछ धनाढ्य घरों के बच्चे यहां के स्कूलों में पढ़ने आते हैं। इनमें से कुछ स्कूल तो ऐसे भी है जहां कुछ परिवार कई पीढ़ियों से अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजते आ रहे हैं।
इस बार दार्जिलिंग और आसपास के पहाड़ी क्षेत्रों में बंद 50 दिन से चल रहा है और यह सबसे लंबा बंद है। स्कूल प्रशासन का भी कहना है कि परेशान पैरंट्स के फोन लगातार हमारे पास आ रहे हैं। इन स्कूलों में 6000 से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं और स्कूल प्रशासन का मानना है कि इस बार बड़ी संख्या में बोर्डिंग में पढ़ने वाले बच्चे लौटकर न आएं। स्कूल प्रशासन पैरंट्स से अगस्त तक रुकने के लिए कह रहे हैं, लेकिन कहीं और ऐडमिशन न होने के संदेह में कुछ पैरंट्स अपने बच्चों का ऐडमिशन दूसरे स्कूलों में करवा रहे हैं। स्कूलों का मानना है कि शायद इस सेशन में 3000 बच्चे जो बोर्डिंग में रहते थे, लौटकर न आएं।
बता दें कि कुछ दिन पहले ही जीजेएम नेताओं ने कहा था कि स्कूल हमारे लिए दबाव डालने का सबसे मजबूत हथियार है। दार्जिलिंग के एक मिशनरी स्कूल के टीचर का इस बारे में कहना है, ‘अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए नेता और राजनीतिक दल स्कूल और बच्चों को भी अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करने से पीछे नहीं हटेंगे।’
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