कोलकाता। तृणमूल कांग्रेस को अलविदा कहकर भाजपा का झंडा थामने की बातों को महज अफवाह बताते हुए मुकुल राय ने कहा कि इन बातों का कोई मतलब ही नही है। वह अपनी पार्टी से ्लग होने की बात सोच भी नही सकते हैं। हलांकि इस बात की भी चर्चा है कि पार्टी से मुकुल के लोग विदा हो रहे हैं। मुकुल राय ने तृणमूल छोड़ने की बातों का जोरदार खण्डन करते हुए कहा कि सारी बाते आधारहीन और बेबुनियाद ही है। वह पार्टी में हैं और रहेंगें।
तृणमूल के भीतर ही चर्चा का दौर गरम है  कि मुकुल ने पार्टी की विस्तार योजना के तहत जिन लोगों को पार्टी में लाया था, अब वे लोग धीरे-धीरे विदा हो रहे हैं। त्रिपुरा में कांग्रेस से तोड़कर मुकुल ने जिन छह विधायकों को तृणमूल में शामिल करवाया था।उक्त लोग सीधे भाजपा का दामन थाम लिया है। जबकि केरल में पार्टी का झंडा थामनेवाले सभी लोग फॉरवर्ड ब्लाॅक में जा चुके हैं।  पंजाब, बिहार और उत्तर प्रदेश में हालात अनुकूल नहीं है।   थोड़ी बहुत गुंजाइश बंगाल से सटे झारखंड में है।  लेकिन जिन लोगों को मुकुल राय तृणमूल का झंडा पकड़ाये थे, आज एक-एक कर वे लोग भाजपा या अन्य पार्टियों का दामन थाम रहे हैं। वैसे पार्टी के अन्दर ही मुकुल राय संदेह के घेरे में हैं । बंगाल में भी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान क्राॅस वोटिंग हुई थी और  विरोधी दलों का आरोप है कि यह क्राॅस वोटिंग तृणमूल कांग्रेस के विधायकों ने किया है।  लेकिन ममता ने शहीद दिवस की सभा में यह ठीकरा विरोधी दल यानी कांग्रेस और वाम के मत्थे फोड़ दिया। जब से अभिषेक बंद्योपाध्याय तृणमूल युवा कांग्रेस की जिम्मेवारी दी गई है और संगठन पर उनकी पकड़ मजबूत होते जा रही है। इसके अलावा सुब्रत बख्शी तकनीकी रूप से सारी कार्रवाई संभाल रहे हैं। दिल्ली का मोरचा डेरेक ओ ब्रायन ने संभाल रखा है। ऐसे में पार्टी के अंदर मुकुल राय की अहमियत अब नहीं के बराबर रह गयी है। या यूं कहें कि उन्हें दरकिनार किया जा रहा है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि राजनीतिक रूप से मुकुल की वाफादारी पर अब सवालिया निशान उठने लगा है।
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