राज्य में कांग्रेस-वाम गंठबंधन भी टूटा!

कोलकाता। राजनीति में कब क्या हो जाये कहा नहीं जा सकता है. बिहार में राजद-जदयू-कांग्रेस का महागंठबंधन टूटने के बाद पश्चिम बंगाल में वाम दलों के साथ कांग्रेस का गंठबंधन भी लगता है टूट गया. राज्यसभा चुनाव में दोनों दल अपना-अपना प्रत्याशी उतारने जा रहे हैं, जबकि किसी भी दल के पास अपने प्रत्याशी को जिताने लायक वोट नहीं है.
वामदलों की ओर से विकास रंजन भट्टाचार्य राज्यसभा के उम्मीदवार किये गये हैं. वही कांग्रेस ने भी प्रदीप भट्टाचार्य को मैदान में उतारने का फैसला कर लिया है. हालांकि, इस संबंध में अब तक कोई आधिकारिक एलान नहीं हुआ है, लेकिन बांग्ला दैनिक ‘एई समय’ ने कहा है कि कांग्रेस आलाकमान इस संबंध में गुरुवार को ही अंतिम फैसला ले चुका है. ज्ञात हो कि कांग्रेस चाहती थी कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी को वामदल राज्यसभा भेजें. कांग्रेस उन्हें अपना समर्थन देने के लिए भी तैयार थी. लेकिन, पोलित ब्यूरो ने कांग्रेस की मदद से अपने उम्मीदवार को राज्यसभा भेजने के कांग्रेस के प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया. साथ ही कहा गया कि पार्टी की परंपरा के विपरीत किसी नेता को राज्यसभा का लगातार तीसरा कार्यकाल नहीं मिलेगा.
उधर, कांग्रेस को उम्मीद थी कि यदि सीताराम केसरी एक बार फिर राज्यसभा पहुंच जायेंगे, तो आनेवाले दिनों में उच्च सदन में कमजोर हो रहे विपक्ष को एक मजबूत नेता मिल जायेगा. इससे कांग्रेस को सरकार पर हमले करने में मदद मिलेगी. लेकिन उसकी इस मंशा पर दक्षिण के वामपंथियों ने पानी फेर दिया. इधर, ममता बनर्जी ने प्रदीप भट्टाचार्य को इस बात के प्रति आश्वस्त किया कि यदि वह राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करते हैं, तो तृणमूल कांग्रेस के नेता उनके पक्ष में मतदान करेंगे. इस तरह ममता दी ने कूटनीतिक रूप से कांग्रेस और वामदलों में फूट डाल दी है.
बहरहाल, इसे ममता बनर्जी का मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है. गुरुवार को राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने प्रदीप भट्टाचार्य को पार्टी के फैसले से अवगत कराया, उससे पहले ही तृणमूल ने उन्हें समर्थन देने की इच्छा जता दी थी.
बहरहाल, एक राज्यसभा सीट देकर दीदी ने बंगाल विधानसभा के आगामी चुनावों में अपनी स्थिति मजबूत करने की पूरी तैयारी कर ली है. आगामी विधानसभा चुनावों में यदि कांग्रेस और वामदल अलग-अलग लड़ेंगे, तो इसका फायदा ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस को ही होगा.
राष्ट्रीय राजनीति पर गहरी पकड़ रखनेवाले लोग मान रहे हैं पहले से ही कमजोर हो चुकी कांग्रेस और वामदलों की इस हार के बाद विधानसभा चुनावों में ममता के हौसले बुलंद रहेंगे. केंद्र की राजनीति में भी जल्दी ही उनका कद बड़ा हो जायेगा. बहरहाल देखना है कि आगे क्या होता है.

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