त्यौहारों पर भी दूर की धरती की पसंद

जगदीश यादव
कोलकाता। कहते हैं कि दूर के ढोल सुहावने लगते हैं। महानगर कोलकाता में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। देश की मिट्टी से महकने वाले फूलों को अपनी ही धरती पर भाव नहीं मिल रहे हैं। विदेशी फूलों का भाव और मांग दोनों भारी पड़ रहे हैं। हावड़ा फूल बाजार हो या फिर महानगर का लेक मार्केट हर जगह देसी फूलों की बेकदरी हो रही है। सावन का सोमवार शुरु हो गया है और हैरत की बात है कि अब मंदिरों में सजावत के लिये भी विदेशी धरती के फूल लोगों की खास पसंद बन रहें हैं। ऑर्किड, कारनेशन, लिली, ट्यूलिप और एंथूरियम अब केवल यूरोप के घरों में ही नहीं सजते बल्कि भारत में ये फूल ‘फ़ैशन स्टेटमेंट’ बन गए हैं। phulइंपोर्टेड फूल महानगरों में इन दिनों मिठाइयों के डिब्बों से बेहतर तोहफ़ा माने जाने लगे हैं। फूल बिक्रेता करण व राकेश मांझी की माने तो शादी, विवाह, त्योहारों, भवनों, कार्यक्रमों की शोभा बढ़ाने में अपनी अहम भूमिका निभाने वाले देशी फूल इन दिनों मंदी का शिकार हैं। आयोजनों में सबसे ज्यादा फ्लोरेंश रोज, जाफरानी (गेंदा) और गुलदाबरी की खपत हो रही है। ऑरकेट, लिलियम, एंथोरियम और टाटा रोज की होटलों में सबसे ज्यादा खपत है। वहीं कार्यक्रमों सजावट में कृत्रिम फूलों का प्रतिशत हर साल बढ़ रहा है। फूल मंडी में व्यापारी और किसान परेशान हैं। उन्हें अच्छा भाव नहीं मिल पा रहा है। विदेशी फूल ऑरकेट, लिलियम,एंथोरियम थाइलैंड से मंगवाया जाता है। फूल बेचने वालोने बताया कि विदेसी फूलों का लोगों पर असर इस तरह से है कि एक बड़ा वर्ग बुके आदी के लिये विदेशी को ही प्राथमिकता दें रहें है। हमलोगों की मजबूरी है कि हमलोग बाजार के मांग को सलाम करने के लिये बाध्य हैं कारण सवाल पेट का जो है।

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