सैनिटरी नैपकिन से कही ना कर लें तौबा
सोनागाछी में हर माह 50 हजार नैपकिनों की खपत
जगदीश यादव
कोलकाता। इस देश में ही नहीं बरन दुनिया भर में एशिया के वृहतम रेड लाइट के रुप में शुमार कोलकाता का सोनागाछी इलाके में जीएसटी का असर फड़ सकता है। ऐसे में सोनागाछी की गलियों में भी जीएसटी की चर्चा हो रही है। यह शोध का विषय हो सकता है कि यहां की यौन कर्मियों के बीच जीएसटी की कितनी जानकारी है लेकिन यह उनके लिये तमाम चर्चा के कारण हव्वा बनता जा रहा। जैसे जीएसटी कोई बीमारी का वायरस हो। यहां की गलियों में ग्रहकों को लुभाती यौन कर्मियों के बीच चिंता की लहर अपने स्वास्थ्य को लेकर भी छिड़ गई है। यह बात उनलोगों से बात करने पर पता चलता है
जीएसटी के तहत सैनिटरी नैपकिन पर लगे 12 फीसदी कर से सोनागाछी की यौन कर्मियां पशोपेश हैं। ऐसे में उनलोगों का मानना है कि सैनिटरी नैपकिन पर लगे इस कर से वह पुराने ढर्रे में आना पड़ेगा। एक समय था जब उक्त लोग नैपकिन का उपयोग करने को लेकर अनिच्छुक रहती थीं। दुर्बार महिला समन्वय कमिटी की मुख्य जन सम्पर्क अधिकारी महाश्वेता ने विशेष बातचीत में बताया कि स्वास्थ्य और सफाई के बारे में लगातार चलाए गए जागरूकता अभियान के बाद महिलाओं ने 10 साल पहले सैनिटरी पैड का उपयोग करना शुरू किया था, लेकिन सैनटरी नैपकिन के दाम बढ़ने से सारे अच्छे कार्य खत्म होने की आशंका पैदा हो गई है। यहां हर माह 50 हजार सैनेटरी नेपकिन की खपत होती है। जिसे संगठन द्वारा ही सस्ते व वाजिब दर पर उपलब्ध कराया जाता है। ऐसे में यहां पशोपेश की स्थिती है।दुर्बार महिला समन्वय कमिटी के संगठन में 1,30,000 से ज्यादा पंजीकृत सदस्य हैं। मिली जानकारी के अनुसार साल 2000 में सेक्स वर्कर्स द्वारा सैनिटरी नैपकिन उपयोग करने की दर 20 फीसदी थी लेकिन अभी 85 फीसदी से ज्यादा सेक्स वर्कर्स सैनिटरी नैपकिन का उपयोग कर रही हैं। बहरहाल देखना है कि जीेसटी से यहां क्या गुल खिलता है।