कोलकाता। लगता है कि वामपंथियों के गढ़ रहें बंगाल में वामपंथियों को अब अपने वजूद पर ही संकट साफ दिख गया है।  माकपा ने केंद्र सरकार द्वारा पशुओं की खरीद-फरोख्त पर प्रतिबंध के खिलाफ बीफ फेस्टिवल आयोजित नहीं करने का निर्णय लिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि माकपा को लगता है कि इससे बहुसंख्यक समुदाय की भावनाएं आहत होंगी।
इस बाबत माकपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा ‘केंद्र की भाजपा सरकार जो कर रही है वह ठीक नहीं है’ लेकिन यदि आप बीफ अथवा पोर्क फेस्टिवल का आयोजन करते हैं तो इसका मतलब यह है कि आप किसी को धर्मनिरपेक्षता का प्रमाण देने के लिए बाध्य करते हैं, हमें लगता है कि धर्मनिरपेक्षता प्रमाणित करने के लिए बीफ या पोर्क का उपभोग करना आवश्यक नहीं है।’ माकपा नेता ने आगे कहा कि बीफ फेस्टिव आयोजित करने का बहुसंख्यक समाज में गलत संदेश जाता है जिसका सीधा फायदा प्रदेश में भाजपा को मिल सकता है।
उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल में करीब 70 फीसद हिंदू आबादी है जबकि यहां मुस्लिम आबादी 28 फीसद है। बीते साल हुए विधानसभा चुनाव से लेकर उपचुनाव और नपा चुनाव में भाजपा लगातार जनाधार बढ़ा रही है जबकि माकपा हाशिये पर जा रही है।
वहीं, माकपा नेता ने कहा कि राज्य सरकार की तुष्टीकरण की राजनीति के बदौलत राज्य में भाजपा तेजी से पैठ बढ़ा रही है और अब अगर हम बीफ फेस्टिवल आयोजित करते हैं तो यह सांप्रदायिक आग में घी के समान काम करेगा।दूसरी ओर, वाममोर्चा में घटक दलों में शामिल आरएसपी के राज्य सचिव क्षिति गोस्वामी ने कहा कि हम बीफ पार्टी आयोजित करने के खिलाफ है क्योंकि इससे राज्य में वामपंथियों के खिलाफ गलत संदेश जाएगा।
यह बात दीगर है कि इससे इतर केरल के कई हिस्सों में माकपा की युवा और छात्र विंग क्रमश: डीवाइएफआइ और एसएफआइ ने पिछले हफ्ते उक्त प्रतिबंध के खिलाफ कई जगह बीफ फेस्टिवल का आयोजन किया था। इधर, एसएफआइ और डीवाइएफआइ ने भी यह स्वीकार किया है कि केरल में जो कुछ किया गया उसे बंगाल में नहीं किया जा सकता।
एक वरिष्ठ डीआइएफआइ नेता ने कहा कि केरल और बंगाल की राजनीतिक स्थिति अलग है इसलिए केरल में जो भी किया जा सकता है वह यहां नहीं किया जा सकता है लेकिन हम प्रतिबंध के खिलाफ जल्द ही कुछ विरोध कार्यक्रम आयोजित करेंगे। बताते चलें कि दादरी मामले के बाद यहां महानगर में वरिष्ठ माकपा नेता विकास रंजन भट्टाचार्य ने बुद्धिजीवी तृणमूल समर्थक सुबोध सरकार के साथ सार्वजनिक तौर पर बीफ खाकर विरोध जताया था। इस वाक्ये की वाममोर्चा के अन्य घटक दलों ने आलोचना की थी और फिर यह माकपा के हित में भी साबित नहीं हो सका है।
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