तारकेश कुमार ओझा

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

ब्रेकिंग न्यूज… बड़ी खबर…। चैनलों पर इस तरह की झिलमिलाहट होते ही पता नहीं क्यों मेरे जेहन में कुछ खास परिघटनाएं ही उमड़ने – घुमड़ने लगती है। मुझे लगता है यह ब्रेकिंग न्यूज देश की राजधानी दिल्ली के कुछ राजनेताओं के आपसी विवाद से जुड़ा हो सकता है या फिर किसी मशहूर राजनेता घराने के भाई – भतीजों से भी जुड़ी हो सकती है। यह भी संभव है किसी सेलीब्रेटीज ने कोई उपपटांग बयान दिया हो। या फिर क्रिकेट या बालीवुड में कोई  नई हलचल पैदा हुई होगी। यह आश्वस्ति तो रहती ही है कि बड़ी खबर या ब्रेकिंग न्यूज देश के उस हिस्से से जुड़ी नहीं ही होगी , जो राष्ट्रीय परिदृश्य से सामान्यतः गायब ही रहने को अभिशप्त हैं। मेरे गृहप्रदेश पश्चिम बंगाल से जुड़ी साल में  एकाध खबर में भी राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां नहीं बन पाती। उत्तर पूर्व से सुदूर राज्यों की तो बात ही क्या करें। मेरे गृह राज्य के एक तरफ ओड़िशा है तो दूसरी ओर झारखंड और असम। लेकिन भूले – भटके ही यहां की कोई खबर या सूचना राष्ट्रीय मीडिया में कभी नजर आती है। ऐेसे में अक्सर सोच में पड़ जाता हूं कि क्या इन राज्यों में कभी कोई बड़ी घटना नहीं होती या वहां की जनता की कोई समस्या या मुद्दा  नहीं है। जिस पर चर्चा की भी जरूरत महसूस की जाए। क्या दिल्ली के राजनेताओं की तरह इन प्रदेशों के नेताओं के बीच वैसी टांगखिंचाई या मार – कुटाई नहीं होती। फिर क्यों उन पर कभी चर्चा की भी जरूरत महसूस नहीं की जाती। जबकि एक वर्ग का इस पर पूरी तरह से कब्जा है। देश की राजधानी दिल्ली के दो राजनेताओं के आपसी विवाद से जुड़े किस्से लगातार कई दिनों तक देखते – सुनते मैं पक चुका था। देश की नब्ज टटोलने में जब भी चैनलों के सामने होता तभी दोनों में किसी न किसी का बयान प्रमुखता से सुर्खियों में दिखाया जाता … कि फलां आरोप पर अमुक ने यह प्रतिक्र्िया दी है या फिर उन्होंने पहले के आरोपों को बकवास करार दिया है। आरोपों की सत्यता व बकवास बताए जाने के दावे अभी थमते भी नहीं कि तत्काल नया आरोप सामने आ जाता। जबकि  मेरे गृहप्रदेश पश्चिम बंगाल में इस बीच कुछ ऐसी विचलित करने वाली हृदयविदारक घटनाएं हुई जो मानवता को शर्मसार करने के साथ ही सोचने को मजबूर करती थी। नौकरी की चिंता से परेशान मेधावी छात्र की मुझे सोने दो … के नोट के साथ खुदकुशी तो प्रेमी के प्यार में पागल नवविवाहिता का मौत से पहले पति की आखिरी चीख सुनने की विचित्र हसरत। यही नहीं एक हंसते – खेलते परिवार के चार सदस्य एक साथ फंदे से इसलिए झूल गए क्योंकि एक घटना ने उनके आत्मसम्मान को गहरी ठेस पहुंचाई थी। परिवार की किशोरी सदस्य अपने ही मौसेरे भाई की वजह से गर्भवती हो गई थी। परिवार के दूसरे सदस्यों को इस बात का पता तब चला जब गर्भ आठ महीने का हो गया और चिकित्सकों ने गर्भपात से इन्कार कर दिया। ऐसे में लोक- लाज से बचने के लिए घर के सभी लोगों ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली। मौत को खुद ही गले लगाने वालों में नौजवान लड़का भी था। जो कॉलेज में पढ़ता था। त्रासदी का अहसास करने के बाद उस पर क्या बीती होगी इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि फांसी लगाने से पहले उसने फेसबुक पर दोस्तों को अलविदा कहा। यही नहीं कुछ दोस्तों से उसने आखिरी बार फोन पर भी बातचीत की और सभी के खुश रहने की कामना की। दो एक नजदीकियों को उसने मजाकिया लहजे में कहा भी कि यदि उसकी मौत हो गई तो वे आखिरी विदाई देने आएंगे या नहीं। इन घटनाओं पर सार्थक बहस हो सकती थी। लेकिन कथित राष्ट्रीय मीडिया ने इन घटनाओं का कोई नोटिस ही नहीं लिया। सवाल है कि  क्या देश व समाज के कुछ हिस्से खबरों के खजाने से सदा दूर ही रहेंगे।

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